Monday, 22 May 2017

आईये ...जाने ..न्याय की उत्पत्ति और अन्याय के खिलाफ संघर्ष क्यों और कैसे हुआ ........???

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

आईये ...जाने ..न्याय की उत्पत्ति और अन्याय के खिलाफ संघर्ष क्यों और कैसे हुआ ........???
कुछ दिनों से दुनियाभर के लोगों ने हिंदुस्तान की न्यायपालिका का तमाशा देखा ...........
आज हम आप सभी को हिन्दुस्तान की न्यायपालिका के खोखलेपन के बारे में विस्तार से बता रहे हैं , ये जानकारी आपको ये समझने में मदद करेगी कि -- हिंदुस्तान की 130 करोड़ जनता को लोकतंत्र, न्याय, सामान अधिकार, और संविधान के नाम पर किस कदर तक बेवकूफ बनाया जा रहा है ......???
जिसके चलते हमारा देश बुद्धिजीवी लोगों की गन्दी बस्ती बनकर रह गया है ।
किसी भी देश में न्यायपालिका की बहुत बड़ी भूमिका होती है, जिसका काम लोगों को न्याय दिलवाना, उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना होता है । किसी भी देश /समाज की खुशहाली और स्वच्छ समाज के निर्माण में , न्यायपालिका का बहुत बड़ा योगदान होता है ।
न्याय एक बहुत बड़ी सामाजिक जरुरत है, जहाँ पर न्याय रहेगा, वहां पर सुख शांति, समृद्धि , रहेगी, जिसके कारण समाज और देश खुश रहेगा । वैसे तो पशु पक्षियों में भी न्याय की व्यवस्था कुदरत ने बनाई है , जरुरत के हिसाब से , इन्होंने विकसित भी किया है । जीव विज्ञान में ऐसे अनेकों उदहारण देखने को मिल जायेंगे । जैसे कि -- कुत्तों में एक व्यवस्था है कि वे सब मिलकर, उस कुत्ते के खिलाफ संघर्ष करते हुए मिलेंगे जोकि नया कुत्ता उनके एरिया में आ जाता है । और वो नया कुत्ता भी दूसरे एरिया में तो डरकर रहेगा, लेकिन जैसे ही अपने एरिया में आयेगा, तो ताकतवर बनकर लड़ेगा । ऐसे ही बन्दर में भी एक संगठन चलता है , जोकि सेना से मिलता झूलता होता है । ये सच आप कभी भी किसी भी जगह देख सकते हैं ।
मानव एक दिमागी रूप से विकसित प्राणी है , उसके पास बोलने की, क्षमता है, दिमाग ज्यादा विकसित था, तो वो ज्यादा ताकतवर बन गया , ताकत ने अहंकार और स्वार्थी बना दिया । उस ताकत को बनाये रखने के लिए ही अन्याय और अत्याचार का सहारा लिया जाने लगा, और यहाँ से मानव सभ्यता को न्याय की जरूरत महसूस हुई। यहीं से न्याय का जन्म हुआ ।
मानव ने आपस में ही मिलझुल कर , एक दूसरे की समस्या के समाधान के लिए परिवार का चलन शुरू किया, उसमे परिवार के मुखीया की जिम्मेदारी थी, किसी भी सदस्य के खिलाफ हो रहे अन्याय और अत्याचार को रोकना और न्याय दिलवाना भी मुखिया की अहम जिम्मेदारी थी, और सभी सदस्य उनका सम्मान इसलिए करते थे क्योकि वे उनके दर्द और समस्या को समझकर , उसके समाधान की कोशिश करते थे। लोग उन पर विश्वास भी करते थे, क्योकि उनके लोगों के साथ अनुभव भी थे कि उनके पक्ष को जानने के बाद उनको न्याय दिया जायेगा, और न्याय निष्पक्ष मिलेगा क्योंकि मुखिया लालच,स्वार्थ, पक्षपात, भेदभाव और भरष्टाचार से दूर था । एक प्रकार से ये आज की निचली अदालत की तरह थी ।
फिर राजा महाराजाओं का दौर आया । वहाँ पर भी न्याय देने की व्यवस्था थी, और सच मालूम करने के तरीके भी थे और न्याय सुलभ था और मिलता भी तुरंत था ।
राजवाड़े खत्म हुए और फिर अगली न्याय की व्यवस्था आई पंचयाती राज व्यवस्था का जिसमें गाँव मोहल्ले के सभी लोग मिलकर न्याय देने की जिम्मेदारी निभाते थे ।
इन सभी न्याय की व्यवस्थाओ में एक बात बहुत अहम् थी और वो थी सामाजिक शर्म और गलत काम करने का डर, जिसके कारण न्याय, केवल एक शब्द मात्र न होकर, हकीकत में मिलता था, और लोगों का न्याय पर विश्वास भी था ।
इस देश में फिर आया अंग्रेजी हुकुमत का दौर जिसने धीरे 2 इन न्यायिक व्यवस्थाओं को, एक उद्देश्य के लिए, रणनीति के तहत नष्ट करके , कोर्ट बनाये । इस देश की भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाने के लिए , आस्था का चौला पहनाते हुए, इन कोर्टों को न्याय के मंदिर का नाम दे दिया । जब कानून बनाने वाले अंग्रेजी हुकूमत के लोग थे तो उन्होंने हर नियम और कानून अपने फायदे के लिए बनाये गए थे। उस व्यवस्था के बारे में यह भी कहा जाता था कि -- इस व्यवस्था से पीड़ित को कभी भी न्याय मिलेगा ही नहीं ।
एक सीमा तक तो इंसान अन्याय और अत्याचार सहन कर लेता है। लेकिन, जब पीड़ित को न्याय नहीं मिलेगा , .......तो जुस्टिस करनन ही पैदा होंगे । शेष जानकारी अगले लेख में ......

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