Wednesday, 31 May 2017

एक बुजुर्ग महिला का अनुभव.........

आईये.... .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

आदरणीय देशवासियों,
इस समय देश में महिला सशक्तिकरण के नाम पर जो अवैध वसूली का खेल चल रहा है, वो इतने ख़तरनाक स्तर पर पहुँच चूका है कि इसमें शामिल लोगों ( सरपंच, सामाजिक प्रधान, पुलिस, जज, महिला सेल, महिला थाने, और आईयाश/दलाल किस्म के लोग ) के द्वारा, समाज और देश का, वो नुकसान किया जा रहा है जिसके कारण हुए नुक्सान की भरपाई, कभी भी नहीं हो सकती . इसका असर हमारे सामाजिक जीवन में कदम- कदम पर देखने को मिल रहा है .
अभी मैंने कुछ अनुभव देखे जिनका विवरण इस प्रकार है :--
कुछ दिनों पहले मैं दिल्ली से रेवाड़ी ट्रेन से आ रहा था . जनरल डिब्बे में सफ़र था . उसमे एक परिवार था जिसमे उनके 15 के करीब सदस्य थे महिलाएं, लड़कियां और पुरुष . उस डिब्बे की सारी सीटों पर कब्ज़ा कर लिया. बड़ी वाली सीट पर केवल तीन लोग बैठे थे. डिब्बे में और सवारियां भीड़ के कारण खड़ी थी, जिनमे बुजुर्ग महिलाएं, छोटे बच्चे भी थे. उनकी परेशानियों को देखते हुए सीट पर एडजस्ट करने का निवेदन किया ( बड़ी सीट पर 5 से 6 लोग तो आराम से बैठ सकते हैं ). उस परिवार की बेशर्मी देखकर हम हैरान थे कि वे लोग दुसरे लोगों को सीट देने को तैयार ही नहीं और उपर से गुंडागर्दी और बेशर्मी.
हद तो तब हो गई जब इस बेशर्मी में उस परिवार के 60 साल की उम्र के पुरुष भी शामिल हो गए. हम अक्सर ऐसे लोगों का विरोध करने की बजाय, चुप्पी साध लेते हैं. और ये हादसा केवल मेरे साथ एक बार ही नहीं, अनेकों बार होते हैं. लेकिन मुझे कोई बुजुर्ग, विकलांग, या कोई और मजबूर यात्री, बस या ट्रेन में दिखे तो उसको सीट दिलवा ही देता हूँ . चाहे उसके लिए मुझे खड़ा होकर सफ़र क्यों न करना पड़े ...??? लोगों के फर्जीवाड़े से डरने की बजाय, विरोध करना जरूरी होता है. तभी लोग गलत काम करने से डरेंगे.
ऐसे हालात किसी के भी साथ हो सकते हैं, इसके लिए मैं एक सुझाव पेश कर रहा हूँ जो कि मेरे सामने जयपुर से रेवाड़ी ट्रेन का सफ़र करते वक्त लगभग 15 वर्ष पहले हुआ था. मैं जनरल डिब्बे में सफ़र कर रहा था. उपर वाली एक सीट पर लगभग 30 वर्ष आयु की महिला बीमार होने का बहाना करके कब्ज़ा किये हुए थी. जबकि ट्रेन में भीड़ के कारण और यात्री परेशान थे. उस समय एक बुजुर्ग महिला दौसा से चढ़ी और उस जवान बीमार महिला से सीट पर एडजस्ट करने को कहा. वो बुजुर्ग महिला ये समझ गई कि ये औरत बीमारी का ड्रामा कर रही है, और उसने उस जवान औरत को ये कहा कि— बेटा, भगवान् करे, तू इसी तरह लेटी ही रहे, कभी उठने लायक न रहे. ये सुनकर वो महिला झट से उठ खड़ी हुई.
तब उस बुजुर्ग महिला ने हमें बताया कि बेटा, मैं समझ गई थी कि ये औरत झूठ बोलकर बीमारी का बहाना बना रही है . और इस प्रकार बुजुर्ग महिला की समझदारी और अनुभव ने उस चालाक औरत को सीट खाली करने को मजबूर कर दिया . आप भी समझदारी से इस फार्मूले को अपना सकते हैं , क्योकि आजकल सफ़र में औरतें कुछ ज्यादा ही ड्रामा करने लग गई है और दुसरे लोगों की परेशानियों की परवाह न करते हुए, बेशर्मी करते हुए ट्रेन में सीट को कब्ज़ा करने की आदत से बाज नहीं आती हैं.
Appeal...............
आदरणीय देशवासिओ,
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