आईये.... .....!!! भारत बदलें ....
Let's Change India ....
आदरणीय देशवासियों,
जब से बोम्बे हाई कोर्ट ने लेखिका अरुणा राय को अदालत की अवमानना का नोटिस दिया गया है, तब से देश में कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट के बारे में काफी चर्चा हो रही है. हर कोई ये तो कह रहा है कि – सभी को देश की कानून और न्याय व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए. लेकिन, कुछ पहलुओं पर जानबूझकर पर्दा डाला जा रहा है. आइये.... !!! जाने, हिंदुस्तान की न्यायपालिका के कुछ कडवे सच..................
-- हिन्दुस्तान एक लोकतान्त्रिक देश है, हर नागरिक को अपनी बात रखने की आज़ादी है और ये संविधान द्वारा दिया गया, एक मौलिक अधिकार भी है. कोर्ट में भी कोई वकील या पीड़ित अपनी बात रखने का अधिकार रखता है, अन्यथा तो कोई अपने केस की पैरवी ही नहीं कर पायेगा ..........???
--किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की बहुत बड़ी भूमिका होती है.
तो फिर समस्या क्या है ........???
दरअसल न्यायपालिका को पहले लोग सम्मान की नजर से देखते थे और लोग जजों को भगवान् की तरह देखते थे और देश में अदालतों को न्याय के मंदिर कह कर प्रचारित किया गया है.
नेताओं का भी पहले लोग बहुत सम्मान करते थे. क्योकि नैतिक मूल्य ऊँचे थे और उनमे एक शर्म भी थी, गलत काम करने का डर था.. कि – लोग क्या सोचेंगे ...........??? क्योकि कल उनके पास वोट मांगने भी जाना है. लेकिन इनमे से नेहरु, इंदिरा गाँधी जैसे चतुर और शातिर लोग भी थे. जो अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे. इतिहास ऐसे अनेकों उदाहरणों से भरा हुआ है.
पहले जज केवल वे ही लोग बनते थे जिनका परिवार बहुत संपन्न / पढ़ा लिखा हो या फिर जिनकी पहुँच ऊँची हो. सरकार अपनी पसंद के लोगों को ही जज बनाती थी, ताकि अपने हिसाब और फायदे से राज चलाया जा सके.
एक सामान्य आदमी कोर्ट, कानून से डरता है. उसे कानून की बारीकियां और जानकारी नहीं होती .........!!! क्योकि देश के तथाकथित निर्माताओं ने जानबूझकर, हमारी शिक्षा व्यवस्था ही ऐसी बनाई, जिसने शोषण का रास्ता खुला रखा. हमें ऐसी बातें सिखाई ही नहीं गई, जिनका असल जिंदगी में वास्ता पड़ता है. जिसको ज्ञान होगा, उसका शोषण नहीं किया जा सकेगा.....??? इसलिए, हिन्दुस्तान की आम जनता को ज्ञान से वंचित रखा गया.
वकीलों का भी पहले बहुत सम्मान हुआ करता था. कोर्ट और जजों की छवि जनता में इस प्रकार बनाई गई ताकि जनता डरे. “ ताकत जब भी ज्यादा, निरंकुश और असीमित हो, तो कही न कहीं, तानाशाही की तरफ अग्रसर होने लगती है.” वक्त के साथ-- साथ राजनीती में, नैतिक मूल्यों में गिरावट आई. अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए लोकलाज और शर्म को छोड़कर, अपराधीकरण, गुंडागर्दी, धनबल, और असीमित घोटाले, घपले और भ्रष्ट आचरण के कारण, नेताओं का सम्मान कम होता चला गया और जनता नफरत की नजर से देखने लगी.
नेताओ/ विधायिका की कमजोरी का फायदा उठाते हुए, न्यायपालिका ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए, जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर कब्ज़ा कर लिया, और सरकार को इस अधिकार क्षेत्र में अतिकर्मण से रोकने के लिए, न्यायपालिका की स्वतंत्रता का ड्रामा शुरू कर दिया. जब कभी भी भ्रष्ट जजों के खिलाफ कार्यवाही की बात आई तो न्यायपालिका ने (अपनी ताकत और रुतबे को बरकरार रखने के लिए), ऐसे जजों के खिलाफ कार्यवाही न करके, न्यायपालिका को और भी निरकुंश और तानाशाही की और प्रेरित किया.
जब पश्चिम बंगाल के जज सेन के खिलाफ महाभियोग चलने की बात आई तो कांग्रेस के कुछ दलालों की सेटिंग के माध्यम से उसको विफल करके, समाज ऐसा सन्देश दिया कि – एक बार जज बन जाओ, फिर कुछ भी नहीं बिगड़ने वाला.......!!! नेता को तो वोट मांगने के लिए जनता के दरबार में, 5 साल बाद, फिर जाना पड़ेगा. लेकिन एक बार जज बन गए तो समझो हमेशा के लिए सरकारी और तानाशाही की खुली छूट .....
वैसे देश में जजों की तानाशाही, अत्याचार और गैर कानूनी काम के तो हजारों उदहारण हैं. जजों के खिलाफ, आज़ादी से लेकर आजतक केवल 36 मुक़दमे ही दर्ज हो सके हैं, और इस हिम्मत करने वाले लोगों को किस हद तक प्रताड़ित किया गया होगा......???
ये बहुत कम लोग जानते हैं , क्योकि ये बातें मीडिया में नहीं छपती. उनमे न्यायपालिका ने जजों को सजा से बचाने का भरपूर प्रयास किया और अन्याय के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने वाले पीड़ित लोगों को प्रताड़ित करने के लिए, और मीडिया को ऐसी खबरें प्रसारित करने से रोकने के लिए कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट का जमकर दुरूपयोग किया. न्यायपालिका संगठित थी और ताकत का इस्तेमाल करते हुए लोगों की आवाज़ को कुचलने के लिए, जेल भेजने का डर दिखाकर, विधानपालिका की कमजोरी का फायदा उठाते हुए जमकर शोषण और अवैध वसूली करने लग चुकी है. आज देश के सब लोग जानते हैं कि—देश की अदालतों में कितना बुरा हाल है, जज जमकर फर्जीवाड़ा करते हुए, अवैध वसूली करके, गलत फैसले हक में देते हैं. जो अवैध वसूली न दे पाए वो, या तो जेल में होता है या फिर उसे न्याय मिलता ही नहीं है. हाँ, अगर आप सलमान खान, जय ललिता, सोनिया गंदगी, राहुल गाँधी की तरह प्रभावशाली हैं तो, कोई दिक्कत ही नहीं........!!! सब कुछ मैनेज हो जायेगा. सुप्रीम कोर्ट ने सहारा प्रमुख सुबर्तो राय को, बिना किसी शिकायत या FIR की ही जेल में डाल दिया, जोकि सरासर कानून के खिलाफ है. और ऐसे न जाने कितने झूठे मुकदमे देश भर की अदालतों में, प्रताड़ित करने नियत से चलाये जा रहे हैं.....??? जज को, सब कुछ मालूम है, फिर भी केस में फर्जीवाडा करने वाले लोगों के खिलाफ कुछ करने की बजाय, केस को लम्बा खीचने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं. हिंदुस्तान की न्यायपालिका खुद वो जिम्मेदारी और पारदर्शिता नहीं निभाना चाहती जोकि वो दुसरे जनसेवक और संस्थाओं से चाहती है. किसी भी देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की बहुत बड़ी भूमिका होती है. इसी सोच के चलते सुप्रीम कोर्ट ने, सुचना का अधिकार की मूल भावना और सोच को दरकिनार करते हुए, RTI Act को कमजोर करने का काम किया, ताकि न्यायपालिका के फर्जीवाड़े, सामने न आ सकें और भ्रष्टाचारी बच सकें.
जजों के खिलाफ शिकायतों पर कार्यवाही को छुपाना और लोगों को डराने के लिए, उनके खिलाफ झूठे केस दर्ज करने के लिए सर्कुलर तक जारी किये जा रहे हैं, ताकि जजों के फर्जीवाड़े को कार्यवाही बचाया जा सके.............. कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट में ये साफ़ लिखा है कि – न्यायसंगत और जायज सबूतों के आधार पर किसी की आलोचना करना अपराध नहीं है. लेकिन कोई अन्याय के खिलाफ बोले, या मीडिया टीवी चैनल पर प्रसारित कर दे या कोई अखबार छाप दे तो उनके खिलाफ भारी जुर्माना लगाना ( टाइम्स नाउ चैनल में एक खबर में किसी जज की फोटो गलती से लग गई थी तो उसके खिलाफ 100 करोड़ का जुर्माना लगाया और बार – बार माफीनामा प्रसारित करवाया ) और कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट के नोटिस भेज कर झूठे मुक़दमे चलाकर, लोगों को प्रताड़ित करना, तानाशाही नहीं तो क्या है ................??? क्या किसी पीड़ित को कभी इतने बड़ी राशी का क्लेम दिया गया ...........??? क्यों नहीं ...........???
बोम्बे हाई कोर्ट के इस नोटिस की सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय कर्तजू ने भी निंदा करते हुए इसे आधारहीन और गलत बताया है. देश भर में ऐसे अनेको झूठे मुक़दमे, जजों ने अपने आप को बचाने, जनता की आवाज़ को कुचलने के उद्देश्य से, अदालतों में दर्ज करवा रखे हैं. मैंने नारनौल के दौरे पर आये चंडीगढ़ हाई कोर्ट के एडमिनिस्ट्रेटिव जज महिंदर सिंह सुल्लर से, लीगल ऐड से वकील दिलवाने के बारे में कहा था, जोकि उन्होंने गैरजिम्मेदार तरीके से मन कर दिया. मैंने उस जज के फर्जीवाड़े की शिकायत कर दी तो झूठे आरोप लगवा कर गैर कानूनी तरीके से 14 दिनों के लिए जेल भिजवाया और झूठे आरोप लगाकर कंटेम्प्ट का मुकदमा चलाकर प्रताड़ित करने की कोशिश की. जबकि उस हाई कोर्ट के जज की नौकरी की नियुक्ति ही गैरकानूनी थी. जिस जज ने इतना बड़ा फर्जीवाड़ा कर रखा हो, वो क्या जिम्मेदारी से काम करेगा ...............??? कभी नहीं .........???
जज अवैध वसूली, गैर कानूनी तरीके अपनाते हुए, अवैध प्रतिफल लेकर, जानबूझकर गलत फैसले लिखकर, निर्दोष लोगों को प्रताड़ित कर रहे हैं. जब पीड़ित शिकायत करता है, तो उसको प्रताड़ित करने के लिए झूठे आरोप ( He tried to scandalize the Court, which lowered down the authority & dignity of Court ) लगाकर जेल भेजना और कांतेम्प्त के झूठे मुकदमे दर्ज करने की शिफारिश करके प्रताड़ित करते हैं. मेरे पास ऐसे अनेकों जजों के फर्जीवाड़े के सबूत हैं, जो स्पष्ट रूप से, निचली कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के जजों के फर्जीवाड़े साबित करता है. कोई भी व्यक्ति ये सबूत देख सकता है.
किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में, जनता की आवाज को कुचलने की कोई भी प्रथा जैसे कि Contempt Of Court Act का कोई स्थान नहीं होना चाहिए. ये प्रावधान अंग्रेजों ने देश की जनता को गुलाम रखने के लिए बनाये थे. जिनका प्रयोग, भ्रष्ट जज अपने कारनामों को बचाने, जनता को डराने और प्रताड़ित करने के लिए कर रहे हैं. हर किसी पर कोर्ट की अवमानना के झूठे आरोप लगाकर प्रताड़ित कर रहे हैं. लोकतंत्रिक व्यवस्था में जजों को आलोचना का भी स्वागत करना चाहिए. ये देश कोई तानाशाही व्यवस्था में नहीं चल रहा है, अब वक्त बदल चूका है और मनमानी नहीं चल सकती .......!!! लोकतंत्र में जजों को भी जिम्मेदारी से काम करने पड़ेंगे. और ईमानदार जजों को इन बातों से डरने की जरुरत ही नहीं है. इसलिए, अब Contempt Of Court Act के इस प्रावधान को खत्म करने की जरुरत है और इसके साथ—साथ जजों को जिम्मेदार बनाने के लिए, जजों की जबाबदेही सुनिश्चित करने वाला कानून भी बनाना जरूरी हो गया है.
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