Sunday, 12 June 2016

Memorandum for single date & same court for Hearing of all Matrimonial cases

 ...............   खुला पत्र    ................

सेवा में,
                                               श्री नरेंदर भाई मोदी जी,
                                               प्रधानमंत्री, भारत सरकार,
                                               नई दिल्ली .

विषय : देश की अदालतों में, सभी वैवाहिक मुकदमों ( जैसे – दहेज़ प्रताड़ना, घरेलु हिंसा, गुजारा भत्ता, तलाक़ के केस ) की सुनवाई, एक ही जज के पास और एक ही दिन में रखने की प्रक्रिया शुरू करने के बारे में .
आदरणीय मोदी जी,

आपकी  शादी के वक्त तो ये मुकदमें होते ही नहीं थे, लेकिन आजकल महिला सशक्तिकरण की आड़ में, जरूरतमंद महिलाओं के लिए बनाये गए कानूनों (  जैसे कि – दहेज़ प्रताड़ना,  घरेलु हिंसा, गुजारा  भत्ता, तलाक़ सम्बंधित  केस  )  का जमकर दुरूपयोग हों रहा है.  क्योंकी झूठा मुकदमा करने पर महिला को सजा नहीं है.  अपनी गलतियों को छुपाने, पारिवारिक  जिम्मेदारी से बचने,  व्यक्तिगत स्वार्थ, मुफ्त का लालच, अवैध वसूली  और रंजिश की पूर्ति के लिए झूठे मुकदमे दर्ज करवाए जा रहे हैं . जिसमे परिवार के सदस्यों के साथ -2 दूर के रिश्तेदारों को भी, फसाया जा रहा है.  जरूरतमंद महिलाओं की मदद के उद्देश्य से बनाये गये, महिला सेल, महिला थाने, महिला आयोग  भी, जरूरतमंद औरत की मदद की बजाय , अवैध वसूली तथा झूठे मुकदमों में निर्दोष लोगों को फंसने का माध्यम बनकर उभरे हैं.  हर कदम पर पति परिवार को एक शिकार के रूप में ही देखा जा रहा है, चाहे वो पुलिस हों, वकील हों, महिला सेल, महिला थाने हों,  महिला आयोग हों, चाहे हों तथाकथित समाजसेवी महिलाएं हों,  या फिर सरपंच प्रधान हों, ...............सब के सब कहीं ना कहीं पति परिवार का शोषण करके, अवैध वसूली के उद्देश्य से, उस औरत का साथ सिर्फ  इसलिए देते हैं कि --- किसी प्रकार मुकदमा दर्ज हों जाये, अपना जुगाड़ बन जाये, बाकि मरे, कटें, अपना स्वार्थ तो सिद्ध हों गया.

दुरूपयोग का स्तर इन बातों से सिद्ध हों जाता हैं कि ----
1 .  देश में दहेज़ देना कानूनन अपराध होते हुए भी,  दहेज़ प्रताड़ना कानून लागु होने से ( सन 1983 से ) आज तक, कितने मुकदमे, ( पत्नी परिवार के खिलाफ दहेज़ देने के अपराध  के लिए ), किये गये.....???  जबकि हर मुकदमे में झूठे आरोप लगाकर , निर्दोष, घरेलु लोगों को आतंकवादी की तरह, अपराधी मानकर, प्रताड़ित किया जाता है.
2. दहेज़ प्रताड़ना के कितने मुकदमों में, पत्नी  परिवार, दहेज़ में दिए गये सामान की खरीद के सबूत यानि कि बिल प्रस्तुत करते  हैं..............???  सारा सच जानते हुए भी, फर्जीवाड़े करने  और करवाने में,  पुलिस से लेकर जज तक, निर्दोष का शोषण करने की नियत से, ड्रामा क्यों करते हैं ..........???  जब कुछ सबूत हैं ही नहीं, तो फिर केस दर्ज करने को ये लोग इतने उतावले क्यों रहते हैं .............???
3. जब केस झूठा साबित भी हों गया, पति  परिवार का सब कुछ ( इज्जत, पैसा, काम धंधा ) बर्बाद होने, कोर्ट का कीमती वक्त बर्बाद होने पर भी, कोर्ट और जज,  उसी समय झूठे मुकदमे करने वाली औरतों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं करते  .............???
4. बिना किसी जायज सबूत कारण के, केवल चालाक मुफ्तखोर  और गैर जिम्मेदार वकीलों के सिखाये गये आरोपों के आधार पर,  पति परिवार के खिलाफ़ 3 से 5 मुकदमे डालकर, कोर्ट में आरोपी बनाना......... क्योंकी सबूत तो थे ही नहीं, ( यही कारण है कि इन मुकदमों में केस साबित न होने के कारण सजा की दर, सभी प्रकार के मुकदमों से कम है , केवल लगभग 15 % ) इसलिए कोर्ट में 3 से 5 साल तक ट्रायल भुगतने के बाद में, ये  मुकदमे झूठे पाए जाते हैं.  लेकिन इस झूठे ट्रायल में दौरान लगाई गई बंदिशों के कारण पति परिवार का कितना नुकसान हुआ ............???  उसकी भरपाई किस से की जाये .....???  झूठा मुकदमा करने वाली औरत से,........ या फिर झूठा मुकदमा करवाने वाले वकील, पुलिस, महिला सेल से,...........  या उस झूठे केस को कोर्ट में, चलाने वाले जज से,............. या फिर इन कानूनों के दुरूपयोग के समाधान के लिए, जानबूझकर  संशोधन न करने वाले, सांसद और विधायकों से ...........???  
6. पति परिवार पर लगाई गई बंदिश कि – अगर वे किसी कारण से कोर्ट  ( जोकि हमेशा पत्नी के शहर में स्थित होता है, जबकि पति परिवार को कभी -2 तो बहुत लम्बी दूरी का सफ़र करके आना पड़ता है ) में हाजिर नहीं हों सके, चाहे उनकी कोई जायज मजबूरी हों तो भी उनके खिलाफ वारंट जारी  कर दिए जाते हैं.  दूसरी तरफ, उस पत्नी परिवार को उस शहर में स्थित कोर्ट में हाजिर होना जरुरी नहीं...........  इस गैर समानता और भेदभाव के प्रावधान के कारण, ये मुकदमे लम्बे खींचते रहते हैं, पत्नी जानबूझकर, पति परिवार को परेशान  करने की नियत से, मुकदमों में, अपने ही शहर में चल रहे केसों में,  पेश होती ही नहीं.........., जबकि पति परिवार को, हजार किलोमीटर सफ़र तय कर के भी कोर्ट में पेश होना जरुरी है .  वैसे इस देश में संविधान के अनुसार सभी को समानता का अधिकार दिया गया है.
7. और ये सब एक मुकदमे में नहीं, 3 से 5 मुकदमे, जिनमे अलग—2 कोर्ट और  अलग तारीख के कारण, होने वाले नुकसान की तरफ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि – इन गलत कानूनी प्रावधानों के कारण देश, समाज, अर्थव्यवस्था, युवा शक्ति का कितना बड़ा नुकसान हों रहा है ...........???
8.  एक ही मुद्दे पर आधारित अलग -2 मुकदमों के लिए, अलग -2 जजों को केस देने से, [ जैसे कि – मेरा कोई केस है उससे सम्बंधित सभी मुकदमे ( दहेज़ प्रताड़ना, घरेलु हिंसा, गुजारा भत्ता, तलाक़ के केस) अगर एक ही जज के पास हों तो,  अलग -2 जजों को एक ही केस में, अलग-2 समय और उर्जा बर्बाद करने की बजाय, एक ही जज के द्वारा सुनवाई करने से, बर्बाद होने वाला वक्त और उर्जा को बचाकर, किसी और पीड़ित को जल्द न्याय दिलवाया जा सकता है ] एक ही मुद्दे पर कई जजों की कीमती, वक्त और उर्जा का नुकसान........... अगर वे सभी केस एक ही जज के पास होंगे, तो एक मुद्दे पर आधारित केसों, में जजों और कोर्ट की कीमती वक्त और उर्जा बर्बाद होने से बचेगी.
9.  इन मुकदमों में कोई ठोस आधार या सबूत तो होता ही नहीं, केवल वकीलों के द्वारा सिखाये गये आरोपों के आधार पर केस दर्ज करने से,.......... न तो केस दर्ज करने वाली पत्नी को न्याय मिल रहा,............ केवल उनका इतना स्वार्थ सिद्ध हों रहा है कि – देखो .....!!! हमनें इनके इतने  चक्कर कटवा दिए........  पति परिवार को परेशान और प्रताड़ित करके, अवैध वसूली कर ली .
10.   इन मुफ्तखोर औरतों का तो क्या गया ..........??? नुक्सान हुआ तो पति परिवार के सदस्यों का , जिनका काम धंधा ठप्प हुआ, इज्जत मिटटी में मिली, मानसिक प्रताड़ना हुई, कोर्ट--वकीलों के खर्चे बढ़ गये......... और वो भी एक ही समस्या से सम्बंधित मुकदमों की सुनवाई अलग-2 तारीख होने के कारण तथा दुसरे शहर में होने के कारण............
11. इस प्रताड़ना के कारण, न केवल व्यक्तिगत बल्कि सार्वजानिक नुक्सान भी हुआ,  न केवल युवा शक्ति, बल्कि उसके साथ-2 बुजुर्गों की प्रताड़ना, बच्चों की प्रताड़ना,........  वैसे तो हम हिन्दू संस्कृति और संस्कारों की बात करते हैं जिसमें बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए,  लेकिन इस देश की सरकार  और कानून तो बुजुर्गों की मदद की बजाय,  उनका खून चूसकर, उनको प्रताड़ित करके, उनको घुट घुटकर मरने को मजबूर कर रहे हैं.
12.  जानबूझकर इन कानूनों के दुरूपयोग पर,  कड़ी सजा का प्रावधान नहीं करने के कारण, झूठे मुकदमों को डालने और डलवाने वाले लोग, जमकर उन निर्दोष लोगों का शोषण कर रहे हैं,......... जिनका कभी भी किसी भी अपराधिक मामलों से कोई सम्बन्ध ही नहीं रहा . परिवार के सभी सदस्यों का नाम झूठे मुकदमों में घसीटे जाने के कारण,......... झूठे मुकदमों पर कोई ठोस कार्यवाही न करने के कारण,.......  न केवल बुजुर्ग, बाकि युवा पीढ़ी भी खरतनाक दबाब और घुटन में जी रही है.  देश में पुरुषों की आत्महत्या  के आंकड़े बता रहे हैं कि --- 16 से 35 साल की आयु वर्ग में एक औरत के बदले, दो से भी ज्यादा पुरुष आत्म हत्या कर रहे हैं.  इनकी मुख्य वजह – कानून, समाज, रिश्तेदार, परिवार में कहीं पर भी,  पुरुष की बात सुनने वाला नहीं,................. जबकि घर परिवार को चलाने का सारा जिम्मा उसी पर है.
अत्यंत महंगाई और प्रतिस्पर्धा के युग में, कितना दबाब झेल रहा है इस देश का युवा.............. ??? और उपर से झूठे केस दर्ज होने का डर ..........???
13.  इस देश में जरूरतमंद औरत जोकि मेहनत मजदूरी करके, अपना घर चलाने के लिए सहयोग करने वाली, जरूरतमंद औरत को डिलीवरी पर 7 दिन का आराम भी नहीं मिलता........., जबकि चालाक और मुफ्तखोरी करने वाली औरतों को,...............  झूठे मुकदमे दर्ज करवाकर, निर्दोष लोगों को बर्बाद करने का अधिकार ................
 14.  जहाँ पर मुफ्तखोरी और फर्जीवाड़ा करने पर मिलता हों ईनाम ...........  जहाँ युवा शक्ति झूठे मुकदमों की प्रताड़ना के कारण आत्महत्या करने को हों मजबूर, ......... जहाँ बुजुर्ग घुट-2 कर जीने को हों मजबूर,............, जहाँ देश का भविष्य, का बचपन  अवैध वसूली  के दलालों के गैंग का हों रहा हों शिकार,............    वहां इन हालातों से कैसे पैदा होंगे, इस देश में स्विट्ज़रलैंड और जापान जैसे जिम्मेदार और ईमानदार लोग ............???   कैसे ताकतवर बनेगा,  हमारा देश ..........???    जब हम कदम -2 पर प्रताड़ना और घुटन के माहौल में,  कुत्ते बिल्ली वाली जिंदगी जी रहे हों .............
वैसे इस देश में, सबको समानता का अधिकार,  इस देश के संविधान ने दिया है और न्यायपालिका की जिम्मेदारी, नागरिक के इन अधिकारों की रक्षा करना है.

क्या और कैसे हों इस समस्या का समाधान ............???

आज देश की अदालतों में 4 करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं,  कोर्ट / जज की ज्यादातर कीमती वक्त और उर्जा को,  ये मुकदमे बर्बाद कर रहे हैं.   केवल अवैध वसूली के आलावा,  कुछ भी हांसिल नहीं ................ एक चालाक, पढ़ी लिखी, काबिल बहु को खुश करने के चक्कर में,  परिवार की दूसरी औरतों और पुरुषों ( जैसे --  माँ, बहन, चाची, ताई, बुआ, बच्चे, पति, पुरुष, पिता, भाई, देवर )  सब को बर्बाद करने से, इस देश के परिवार खोखले  हों रहे हैं,   संस्कार और संस्कृति बर्बाद हों रही है.   इन बहुओं को केवल अधिकार चाहिए, जिम्मेदारी, फर्ज से कोई लेना देना नहीं,........... पिछले 2 सालों में महिलाओं के जो कारनामे, देश और समाज के सामने आ रहे हैं, उससे ये साबित हों रहा है कि – ये तो बच्चों की भी नहीं रही,............ पति या सास ससुर की सेवा की तो बात ही छोड़ दीजिये.............
अब तो हदें पार हों रही हैं, और जब अति होने लगे, कोई भी ताकत बेलगाम होने लगे तो, उसको नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने आवश्यक हों जाते हैं.

इसलिए,  देशहित, समाजहित, परिवारहित में, युवा शक्ति, बुजुर्ग और बच्चों को प्रताड़ना से बचाने के लिए, महिलाओं के लिए बनाये गये कानूनों के दुरूपयोग के कारण, निर्दोष लोगों की प्रताड़ना, आत्महत्या, अवैध वसूली, शोषण को रोकने के लिए,  कानूनी प्रावधानों में  निम्नलिखित बदलाव की जरुरत है :---
I )    पति परिवार के खिलाफ चल रहे 3 से 5 मुकदमों, की सुनवाई, एक ही तारीख में की जाये .
II )   इन सभी मुकदमों की सुनवाई, अगर  एक ही जज करे, तो समय और उर्जा की बचत होगी, जिसका सदुपयोग दुसरे मुकदमों को निपटारा करने में किया जा सकता है. लंबित मुकदमें, कम होंगे .
III )    झूठे मुकदमे डालने और डलवाने वालों के, अवैध वसूली के इरादे कामयाब नहीं हों सकेंगे.
IV )   इससे पति परिवार के 5 दिन में से,  4 दिन बचेंगे , जिसका सदुपयोग, वे अपने काम धंधे में कर सकेंगे. देश की अर्थव्यवस्था का नुकसान होने से  बचेगा .
V )   इस कदम से न तो कोर्ट को, न जज को, न वकील को, न पत्नी परिवार को कोई फर्क पड़ेगा, न कोई अतिरिक्त खर्चा आएगा, बल्कि पति परिवार की प्रताड़ना कम होगी, झूठे केसों के शिकार लोग, न्याय के लिए लड़ सकेंगे  और समानता का अधिकार कुछ हद तक, लागु होगा.

देश का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते, देश के निर्दोष महिलाओं, बच्चे, पुरुष की प्रताड़ना और शोषण  के दर्द को समझते हुए, उपरोक्त सुधारों को लागु करने की गुजारिश के लिए, आप से विनती कर रहे हैं.  हमें विशवास है कि --- जनहित के इस समस्या के समाधान के लिए,  देश के लोगों के प्रति, अपनी  जिम्मेदारी समझते हुए,  आप आवश्यक कार्यवाही करेंगे.   जय हिन्द .........!!!

दिनांक :  12.06.2016                                                                                                                                                                                                                                        भवदीय

स्थान :   Rewari                                
                   

                                                                           (   Manojj   Kr.  Vishwakarma... )
                                                                             Social Activist, RTI Activist & Scientist…
                                                                                A Responsible Citizen of Nation.....
                                                                                          M—09017419231

Correspondence  Address :   Near – V K School,  Kath Mandi,  Circular Road,  Rewari
(  Haryana )  Pin – 123401

 Let's Change India……………..
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3 comments:

  1. To get copy of this memorandum, send your email id, Name, Address & Phone no.

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  2. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस तीरथ सिंह ठाकुर, अगर वास्तव में, देश की अदालतों में लंबित मुकदमों को कम करना चाहते हैं तो इन सुझावों पर अमल करके दिखाएँ ..................
    अगर नतीजे नहीं आयें तो मुझे जेल भेज देना .......................

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  3. My lord, CJI ने आज फिर 1987 Law Commission की रिपोर्ट का हवाला दे कर एक बार फिर emotional statement देते हु judges की संख्या बड़ा कर 70000 करने की अपील की लेकिन हम सब जानते हैं की उनका ज़्यादा concern HC/SC judges से है जहाँ वो जल्द से जल्द अपने लोगों को appoint करना चाहते हैं।

    Mylord, आपकी सारी बातें ठीक हैं और सारे देश ने आपकी सारी जायज़ और नाजायज़ बातें सुनी और मानी हैं। आपने constitution के against judges की appointments अपने हाथ में ली और सारे अपने बच्चों को ज़बरदस्ती judges बना दिया, फिर भी सब ने चुपचाप सहा और बर्दाश्त किया। आप सिर्फ़ Law Commission की Report No. 230 dated 05.08.2009 implement कर दें और सब 'uncle judges' को उनकी state से बाहर transfer कर दें। मेरे personal opinion से courts की disposal बहुत बड़ जाएगी क्योंकि local judges के personal interest की वजह से एक तरफ़ जहाँ pendency भी बड़ रही है वहाँ disposal भी नहीं होती।

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