नारनौल:
अधिवक्ता मनीष वशिष्ठ ने बताया कि विश्व के सभी देशों की न्यायिक व्यवस्था उनके नागरिकों की भाषा में कार्य करती है, लेकिन भारत की अदालतों में आजादी के 68 वर्ष के बाद भी अंग्रेजों की थोंपी गईभाषा को ही अपनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज जरूरत हो गई है कि हिन्दुस्तान की अदालतों में राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी तथा क्षेत्रिय स्तर पर स्थानीय भाषाओं को प्रयोग करना चाहिए, ताकी आम नागरिक जजों के द्वारा लिखे गए फैसलों को पढ़ सके। उन्हें पता हो कि वे किस दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आजादी के बाद भी कुछ स्वार्थी लोगों ने अदालतों की भाषा को अंग्रेजी ही बनाए रखा।
श्री वशिष्ठ ने बताया कि अदालतों में हिन्दी व क्षेत्रिय भाषाओं को बढ़ावा मिलता है तो देश के हर नागरिक को सुविधा होगी तथा प्रधानमंत्री को देश की जनता इस बड़े बदलाव के लिए याद करेगी। ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों के अनुसार
इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता मनोज विश्वकर्मा रेवाड़ी, यशबीर ढिल्लो एडवोकेट, प्रेम भारद्वाज, महेश दीक्षित, अनिल शर्मा एडवोकेट, भूपेश शर्मा, अजय खुडाना एडवोकेट, आशुतौश शुक्ला एडवोकेट, नरेन्द्र गणियार एडवोकेट, सीताराम बौहरा एडवोकेट आदि अनेकों प्रबुद्धजनों ने ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए तथा ज्ञापन के समय उपस्थित थे।
अदालतों में राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी तथा क्षेत्रिय स्तर पर स्थानीय भाषाओं के प्रयोग करने का कानून बनाने के लिए अधिवक्ता मनीष वशिष्ठ की अगुवाई में वकीलों व प्रबुद्धजनों ने आज जिलाधीश के माध्यम से प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। जिलाधीश नारनौल से ज्ञापन को तत्काल प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजने का भरोसा दिलाया।
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