हमारा संविधान तो बहुत अच्छा, लेकिन कानून ख़राब, इसीलिए........ हिंदुस्तान के लोग न्याय से वंचित....................
देश में व्यवस्था परिवर्तन और सकारात्मक सुधार लाने के इच्छुक कार्यकर्ता बहुधा संविधान को केंद्र में रखकर बहस करने लगते है, कार्यकर्ताओ को संविधान की जगह कानूनों में परिवर्तन की मांग करनी चाहिए।
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ज्यादातर बुद्धिजीवी और नेता आदि भारत के नागरिकों को भ्रमित करने के लिए संविधान संशोधन का हवाला देते है, ताकि समाधान करने की जगह मामले को उलझाया जा सके। चूंकि संविधान संशोधन एक जटिल प्रक्रिया है अत: नेता संविधान की आड़ ले लेते है और बुद्धिजीवी जनता को आतंकित करने के लिये इस पैंतरे का प्रयोग करते है।
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क़ानून और संविधान.......................
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संविधान देश को चलाने के लिए आधारभूत निर्देशों का पुलिंदा है। और इन निर्देशों को लागू करने के लिए जिन अतिरिक्त नियमों-विनियमों की जरुरत होती है उन्हें क़ानून कहते है। इस प्रकार संविधान का पालन करवाने के लिए हमें कानूनों की आवश्यकता होती है। क़ानून जितने बेहतर होंगे संविधान का पालन भी उतना ही अच्छे तरीके से होगा। यदि आप किसी बेहतर संविधान की धज्जियाँ उड़ाना चाहते है तो संविधान के निर्देशों की पालना के लिए घटिया कानूनों का निर्माण करें। इससे संविधान के निर्देशों की पालना नहीं हो पाएगी और संविधान असफल हो जाएगा।
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कुछ उदाहरणों से इसे समझते है
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१) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 में कहा गया है कि --'राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों पर संगठित करने का प्रयास करेगा, तथा विशेषतया गायों और बछड़ो तथा अन्य दुधारू और वाहक ढोरों की नस्ल के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा'
भारत के संविधान में जब यह स्पष्ट लिखा गया है तो फिर भारत के किसान आत्महत्या क्यों कर रहे है और गायें क्यों काटी जा रही है ? क्योंकि संविधान के इन निर्देशों को पालित करने के लिए जिन स्पष्ट दिशा निर्देशों युक्त क़ानूनो की आवश्यकता है उन्हें लागू नहीं किया गया है। और ऐसे क़ानून के अभाव में संविधान में दर्ज इस निर्देश का सिर्फ सांकेतिक महत्व रह गया है।
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२) संविधान के अनुच्छेद 21-क में कहा गया है कि --- 'राज्य विधि बनाकर यह निर्धारित करेगा जिससे 6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बालको को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा दी जा सके'।
लेकिन इस निर्देश को व्यवहार में लाने के लिए सरकारों ने वांछित क़ानून लागू नहीं किये। अत: हम देख सकते है कि पूरे देश में सरकारी स्कूलों का स्तर बदतर से बदतरीन होता जा रहा है और ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को महंगे निजी विद्यालयों में पढ़ाने के लिए बाध्य है।
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तो संविधान में लिखे होने के बावजूद देश में संविधान के इन निर्देशों की पालना क्यों नहीं हो पा रही है ? क्योंकि इन्हें लागू करने के लिए आवश्यक क़ानून लागू नहीं किये गए। स्पष्ट है कि संविधान में कोई बदलाव करने से भी तब तक देश में कोई व्यवहारिक परिवर्तन नहीं आएगा जब तक हम उनके अनुपालन के लिए आवश्यक क़ानूनो को लागू नहीं करें।
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कुल मिलाकर यदि किसी देश का संविधान अच्छा है किन्तु उस देश के क़ानून बुरे है, तो बुरे क़ानून बुरे देश की ही रचना करेंगे। मिसाल के लिए ब्रिटेन के पास कोई लिखित संविधान नहीं है किन्तु अच्छे क़ानूनो ने ब्रिटेन की राज व्यवस्था को बेहतर बनाया। इसीलिए, हमारा आग्रह है कि यदि वे देश की व्यवस्था में कोई सकारात्मक बदलाव लाना चाहते है तो उन्हें संविधान में परिवर्तन पर ध्यान देने की जगह कानूनों को बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए।
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