Wednesday, 30 December 2015

प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र,... हिन्दुस्तान की जनता को, अदालतों में भ्रष्ट जजों के अत्याचार से मुक्ति दिलवाने हेतु.....


(..................खुला पत्र................. )

सेवा में,

 

                         श्री नरेंदर भाई मोदी जी,

                         प्रधानमंत्री भारत सरकार,

                         नई दिल्ली.

 

विषय :--  हिन्दुस्तान की जनता को,  अदालतों में भ्रष्ट जजों के अत्याचार  से मुक्ति दिलवाने हेतु..... 

 

आदरणीय मोदी जी,

पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका ने अपनी तानाशाही को बरकरार रखने के लिए,  जो बेशर्मी दिखाई है.  ( जैसे कि – सुप्रीम कोर्ट ने,  सहारा के प्रमुख सुबरतो राय को,  बिना किसी शिकायत और FIR के जेल में डालकर, कानून और प्रक्रिया का मजाक बना दिया और अब जमानत भी नहीं दे रही .......!!!  ) उससे ये साबित हो चूका है कि ---  ये लोग अपने रुतबे को कायम रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.........??? 

  
 ये लोग अपने आप को इस तरह से पेश करना चाहते हैं कि कोई भी इनसे सवाल जबाब न करे और देश की भोली भाली जनता,  इनको भगवान की तरह इनकी पूजती रहे. 
  ये लोग जो मन में आये वो करते रहे   और जिम्मेदारी निभाने की बात इनसे कभी भी न की जाये. 
देश की अदालतों में,  पीड़ित लोगों की समस्या के समाधान करने की कोशिश की बजाय, जनता को डराने के लिए कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट का सहारा लेकर और जेल भेजने का सहारा लेकर लोगों को डराया जाता है.

 

Indian Judiciary is not willing to follow the same Standards of Transparency and Accountability, What it expects from other Public Authorities & Public Servants…….???  And in any Democracy Accountability & Transparency play most important  Role.

 

जब देश में कानून  दुरूपयोग / लापरवाही पर डॉक्टर को सजा है,............. इंजिनियर को सजा है,............. ड्राईवर को सजा है,................... पुलिस को सजा है,.................. वकील को सजा है,...............  प्रशासनिक अधिकारी को सजा है,.................. सांसद/ विधायक/ मंत्री को सजा है, .........................तो फर्जीवाड़ा करने, जानबूझकर कानून दुरूपयोग करने पर,  जजों को सजा क्यों नहीं ........................???        

ये सारी खामियां हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था की देन  हैं,  जिसको अंग्रेजों ने हमें गुलाम रखने के लिए बनाया था.   उस समय के तथाकथित देश निर्माताओं ने अपने स्वार्थों की पूर्ति और हमें हमेशा के लिए गुलाम रखने की नियत से, चालाकी करते हुए, आज़ादी के बाद भी इस व्यवस्था को देश की जरुरत के हिसाब से बदलने की बजाय, उसी गली सड़ी न्यायिक व्यवस्था को ही जारी  रखा.   जोकि न्याय देने के लिए, बनाई ही नहीं गई,  तो जनता को न्याय कैसे मिलेगा ...............???   

इस समय देश में, नयायपालिका की खामियों के चलते,  लोगों को न्याय न मिल पाने के कारण, युवा से लेकर, बुजुर्ग, बच्चे, महिला, जो भी किसी भी कारण से कमजोर है. उसका जमकर शोषण हो रहा है. जिसके कारण न केवल सामाजिक सौहार्द, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी खतरा है.  इस प्रताड़ना और शोषण के कारण, लोग आत्महत्या करने को मजबूर हैं. 

जो समाज या देश किसी समस्या की जमीनी हकीकत को नकारकर चलता है, वो कभी भी ताकतवर नहीं बन सकता, ................. उसे हराना सबसे आसान है क्योकि वो अन्दर से खोखला है ....................... 

ये व्यवस्था द्वारा पोषित शोषण,  पीड़ित  का ठीक उसी प्रकार शोषण करता है, जिस प्रकार गन्ने के रस निकलने की मशीन में गन्ने का रस निकालकर, छिलका बना कर  छोड़ दिया जाता है.  और ये हालात, किसी भी देश के लिए खतरनाक हैं.  जब उसके लोग आतंकित, शोषित, बनकर  निराशा के जीवन में जी रहे हों.

        

कोई आदमी परेशान होकर पुलिस के पास जाता है, वो गड़बड़ करती है, झूठे मुकदमे दर्ज करती है. पुलिस से परेशान  होंकर, जब पीड़ित जज के पास जाता है कि – शायद उसे न्याय मिल जायेगा.....!!!  लेकिन जब जज ही फर्जीवाड़ा करने लग जाये, तो न्यायपालिका में क्या बच  गया............??? और दिखावा ऐसा करेंगे जैसे कि--  भगवान् भी चोर, और ये ईमानदार ...........!!!    अब,  ऐसे में पीड़ित लोग कहाँ जायें. ...........???

 

इसके साथ –साथ  ये हालात शिक्षा व्यवस्था की कमियों की  देन हैं.   जिसने हमें मानसिक गुलाम और डरपोक बनाया है और ज्ञान से वंचित रखकर, शोषण का शिकार बनाया है. शिक्षा व्यवस्था की कमियां दूर करने  के साथ-- साथ,  अब  देश में न्यायपालिका के फर्जीवाड़े और निर्दोष  लोगों की प्रताड़ना रोकने और  हिंदुस्तान के जजों को जिम्मेदार बनाने के लिए, जजों की जबाबदेही कानून लाना बेहद जरूरी, हो गया है.

 

पिछले  60 वर्षों में,  कांग्रेस के लोगों ने,  इस देश को बर्बाद करने में,  कोई कसर नहीं छोड़ी.  आप में देश की जनता को  तकलीफों के समझकर,  उनकी  समस्या के समाधान के लिए,  कुछ  करने का जज्बा है.  इसलिए देश के लोगों को आप से बड़ी उम्मीदें हैं.   इस कदम से देश के हर नागरिक ( चाहे हो स्त्री हो, पुरुष हो, बच्चा हो, किसी भी आयु, जाती, धर्म का हो, क्षेत्र का हो ) को सुविधा होगी और आने वाली पीढियां,  आपको इन बड़े बदलाव के लिए याद रखेंगी.  

 

देश के 130 करोड़ लोगों की समस्या को देखते हुए, देश के जिम्मेदार और जागरूक नागरिक होने के नाते आप से  प्रार्थना है कि --  इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए,  जल्द से जल्द, जजों की जबाबदेही सुनिश्चित करने वाला कानून, बनाने की प्रक्रिया शुरू करके, इसे लागु किया जाये.  तभी न्यायपालिका जिम्मेदारी से काम करेगी.................!!!


    इस कदम से देश में एक बहुत बड़ा बदलाव आएगा....!!!   तभी  एक साधारण आदमी को न्याय मिल सकेगा और न्यायपालिका  के अत्याचार और शोषण से बच सकेगा और अपना देश  रहने लायक,  अच्छा हिन्दुस्तान बन सकेगा ....................जय हिन्द.....!!!

                                                       भवदीय

स्थान -- 

दिनांक --                                     Manojj Kr. Vishwakarma... न्याय--- पुरुष
Social Activist, RTI Activist & Scientist
A Responsible Citizen of Nation.......
M-- 09253323118

 

प्रधानमंत्री नरेंदर भाई मोदी जी के नाम खुला पत्र,........ हिन्दुस्तान की जनता को, अदालतों में अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्ति दिलवाने हेतु.....


(..............खुला पत्र.............)

 

सेवा में, 

 

                        श्री नरेंदर भाई मोदी जी,

                        प्रधानमंत्री भारत सरकार,

                        नई दिल्ली.

 

विषय :--  हिन्दुस्तान की जनता को,  अदालतों में अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्ति दिलवाने हेतु..... 

 

आदरणीय मोदी जी,

 

  विश्व के सभी देशों में न्यायिक व्यवस्था,  उनके लोगों की भाषा में काम करती है.  हिंदुस्तान ही दुनियां का अकेला ऐसा देश है, जहाँ की न्यायिक व्यवस्था/ कोर्ट / अदालतें, देश के लोगों की अपनी भाषा में काम नहीं करती.   जिसके कारण आम जनता,  अपनी समस्या अपनी भाषा में नहीं रख पाने के कारण या तो न्याय से वंचित रह जाती है या फिर शोषण  करवाने को मजबूर है.

 

कोर्ट में कार्यभाषा राष्ट्रिय स्तर पर हिंदी और क्षेत्रीय  स्तर पर स्थानीय भाषा का प्रयोग करना चाहिए, ताकि एक आम नागरिक जजों के द्वारा लिखे गए फैसले पढ़ सके और अंग्रेजी भाषा की गुलामी और शोषण से मुक्ति पा सकें. 

 

ये कैसी आज़ादी है ..............???

 

वैसे  कहने को तो हम आज से 68 साल पहले आजाद हो गए थे और ये काम उसी समय पर हो जाना चाहिए था.  लेकिन  कुछ स्वार्थी लोगों ने,  देश की जनता को अंग्रेजी भाषा का गुलाम रखने के लिए,  जानबूझकर न्यायपालिका  की कार्यभाषा को अंग्रेजी ही जारी रखा.  

आज भी देश की अदालतों में अधिकतर लोग ( केवल कुछ % पढ़े लिखे तबके को छोड़कर ), अंग्रेजी भाषा की जानकारी न होने के कारण,  शोषण के शिकार होते हैं.  जज और वकील जहाँ पर कह दें,  वहां पर ये जाने और समझे बिना ही  ( कि वे किस दस्तावेज पर क्यों हस्ताक्षर कर रहे  हैं.........???  क्या उनके फायदे नुकसान हो सकते हैं............???  ), दस्तावेजों पर  हस्ताक्षर कर देने को मजबूर किये जाते  हैं और फिर हेरा फेरी का सिलसिला चलता रहता है.  जजों ने फैसले में क्या लिखा ....??? ये बात एक आम इंसान तो पढ़ ही नहीं सकता ...........!!!  और गुलामों की तरह वकीलों के चक्कर लगते रहते हैं.

 

पिछले  60 वर्षों में,  कांग्रेस के लोगों ने,  इस देश को बर्बाद करने में,  कोई कसर नहीं छोड़ी.  आप में देश की जनता को  तकलीफों के समझकर,  उनकी  समस्या के समाधान के लिए,  काम करने का जज्बा है.  इसलिए देश के लोगों को आप से बड़ी उम्मीदें हैं.   इस कदम से देश के हर नागरिक ( चाहे हो स्त्री हो, पुरुष हो, बच्चा हो, किसी भी आयु, जाती, धर्म का हो, क्षेत्र का हो ) को सुविधा होगी और आने वाली पीढियां,  आपको इन बड़े बदलाव के लिए याद रखेंगी.  

देश के 130 करोड़ लोगों की समस्या को देखते हुए, देश के जिम्मेदार और जागरूक नागरिक होने के नाते आप से  प्रार्थना है कि -- हिंदुस्तान के कोर्ट/ अदालतों  में, अंग्रेजों द्वारा हमें गुलाम बनाने के उद्देश्य से लागु की गई अंग्रेजी भाषा की बजाय, अब  हिंदी और स्थानीय भाषाओँ में काम हों.   ताकि आम जनता न्याय की भाषा और जजों के फैसले पढ़ सके........... अदालतों में हमारी राष्ट्रिय भाषा और स्थानीय भाषा का प्रयोग करने से, देश की आम जनता को एक बड़ी सुविधा मिलेगी  और इससे पारदर्शिता बढ़ेगी.   इस कदम से देश में एक बहुत बड़ा बदलाव आएगा....!!!   न्यायपालिका के कामकाज के बारे में,  एक साधारण आदमी भी बेहतर समझ सकेगा और न्यायपालिका  के अत्याचार और शोषण से बच सकेगा....................जय हिन्द.....!!!

 

                                                       भवदीय

स्थान -- Rewari

दिनांक -- 30/December/15                Manojj Kr. Vishwakarma... न्याय--- पुरुष
                                                                               Social Activist, RTI Activist & Scientist
                                                                              A Responsible Citizen of Nation.......
                                                                              M--    09253323118.

Monday, 28 December 2015

अदालतों में, हमें अंग्रेजी भाषा का गुलाम बनाने का जिम्मेदार कौन...............???

विश्व के सभी देशों में न्यायिक व्यवस्था, उनके लोगों की भाषा में काम करती है. हिंदुस्तान ही दुनियां का अकेला ऐसा देश है जहाँ पर, न्यायिक व्यवस्था देश के लोगों की अपनी भाषा में काम नहीं करती. जिसके कारण आम जनता अपनी समस्या, अपनी भाषा में नहीं रख सकते
Who is responsible to make us slave of English Language, in Indian Courts………….???
In most countries of World, their own languages are used in Judicial system. India is the only Country, where Judicial System does not work in people’s language. Therefore, one canot put forward his plea in his own language.

क्या ये हमें गुलाम रखने की साज़िश तो नहीं थी ................???


 
आखिर नेहरु, महात्मा गाँधी, कांग्रेस, ने आज़ादी के तुरंत बाद अंग्रेजों की गुलाम बनाने वाली न्यायप्रणाली को क्यों नहीं बदला ...........???  

आदरणीय  देशवासियों,
हमारे देश की वर्तमान न्याय व्यवस्था वही चल रही है, जोकि अंग्रेजों ने हमें गुलाम रखने के लिए बनाई थी. हम कहने को आजाद हो गए, लेकिन इस देश के तथाकथित निर्माता जवारलाल नेहरु, और राष्ट्रपिता की उपाधि लेने वाले महात्मा गांघी और उनकी कांग्रेस पार्टी के लोग (जिन्होंने आज़ादी से लेकर लगभग साठ  वर्षों तक शासन  किया) उन्होंने इस न्यायिक व्यवस्था को बदलने के लिए आज तक कदम क्यों नहीं उठाये .....??? और इस देश की जनता को गुलाम बनाकर, न्याय से वंचित रखकर,  देश  के लोगों का वो नुकसान  किया है, जिसकी उम्मीद तो दुश्मनों, देशद्रोही  और गद्दारों  से ही की जा सकती है.

Sunday, 27 December 2015

Suggestion to PMO for inclusion of Legal Aid in CSR

Suggestion for Legal Aid to Needy Persons..............
Grievance Status
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...
Status as on 27 Dec 2015
Registration Number : DEPOJ/E/2015/01789
Name Of Complainant : Manojj Kr Vishwakarma
Date of Receipt : 29 Nov 2015
Received by : Department of Justice
Forwarded to : Department of Justice
Contact Address : Jaisalmer House,
Mansingh Road,
New Delhi110011
Contact Number : 23385020
 
Grievance Description : The Grievance is regarding Legal aid Advocate services to person in need. Today our best talented, Citizens are being Harashed, Tortuted, Murdered/ Killed, by Legal System/ Courts. Needy persons do not have Money to hire Lawyer. If we Add Legal Aid Services in Corporate Social Responsibility. That Hard earned Tax payers Money will be rightly utilized to provide Justice to needy Citizens. In CSR scheme this Money, should be used only for the Welfare of Nation, should not be allowed o be wasted by Corrupt people to misuse of Laws in India, which is deteriorating our Society in a way, the damages canot be compensated and losses are irrepairable. My request in Larger Public Interest to allow CSR scheme funds for Legal Aid Services to help needy Citizens to get Justice. This will save India's Valuable Energy from being Wasted, Timely Justice will help us to make our India better place to live.
                                                                                                  Regard's

                                                                                   Manojj Kr. Vishwakarma
                                                                                  A Responsible Citizen of Nation
                                                                            Social Activist, RTI Activist and Scientist
Current Status : CASE CLOSED

Saturday, 26 December 2015

हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को बदलकर, पारदर्शी बनाना जरूरी...............


आदरणीय देशवासियों,
 
आज हमारे देश में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में खामियों और जुगाड़ के चलते,  नाकाबिल लोग जज जैसे जिम्मेदार पद पर काबिज होकर, देश और समाज का बहुत बड़ा नुकसान  कर रहे हैं.   पहले सरकार अपने मनपसंद लोगों को जज बनाती थी.   फिर जजों ने नियुक्ति प्रक्रिया पर कब्ज़ा किया, तो भाई भतीजावाद और फर्जीवाड़े और बढे. क्योंकि नियुक्ति प्रक्रिया न तो पारदर्शी थी और ना ही क़ाबलियत परखने के लिए कोई मापदंड निर्धारित किये गए.   

नाकाबिल लोगों की जज के पद पर नियुक्ति से जमकर फर्जीवाड़े बढे.    
इसलिये,  देश में जजों की नियुक्ति के लिए UK/ US की तरह सरकार और न्यायपालिका के नियंत्रण से मुक्त, स्वतंत्र संस्था बने. जो जजों के नाम योग्यता के अनुसार निर्धारित करे और योग्यता के आधार सार्वजानिक होने चाहिए.  नामांकित जजों के, नाम सार्वजानिक करके, उनके बारे में जनता से उनके बारे में जानकारी एकत्रित करके ( उन जजों के खिलाफ शिकायतों और उनके अच्छे काम ) फिर उनके नाम निर्धारित मापदंड के अनुसार फाइनल किये जायें और ये सब प्रक्रिया सार्वजानिक और पारदर्शी  हो.  इससे फर्जीवाड़ा करने वाले जज,  हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज नहीं बन सकेंगे.  इससे न्यायपालिका में जिम्मेदारी आएगी और फिर भी कोई जानबूझकर गड़बड़ करे तो उस जज को हटाने की प्रक्रिया भी शुरू करके, पदभार से मुक्त करके, उसके खिलाफ कार्यवाही भी की जाये.  

हिंदुस्तान के कोर्ट में हिंदी और स्थानीय भाषाओँ में काम हों, ताकि आम जनता न्याय की भाषा और जजों के फैसले पढ़ सके...........


आदरणीय देशवासियों,
 
कोर्ट में कार्यभाषा राष्ट्रिय स्तर पर हिंदी और क्षेत्रीय  स्तर पर स्थानीय भाषा का प्रयोग करना चाहिए, ताकि एक आम नागरिक जजों के द्वारा लिखे गए फैसले पढ़ सके.   आज अदालतों में लोग, अंग्रेजी भाषा की जानकारी न होने के कारण, शोषण के शिकार होते हैं और गुलामों की तरह वकीलों के चक्कर लगते रहते हैं. अदालतों में हमारी राष्ट्रिय भाषा और स्थानीय भाषा का प्रयोग करने से, देश की आम जनता को एक बड़ी सुविधा मिलेगी  और इससे पारदर्शिता बढ़ेगी.   इस कदम से देश में एक बहुत बड़ा बदलाव आएगा....!!!   न्यायपालिका के कामकाज के बारे में,  एक साधारण आदमी भी बेहतर समझ सकेगा और जजों वकीलों के अत्याचार और शोषण से बच सकेगा....................

हिंदुस्तान कि शिक्षा व्यवस्था को बदलने के लिए कुछ सुझाव ..................

 आदरणीय देशवासियों,
शिक्षा किसी भी सभ्य समाज को ज्ञान प्रदान करने हुए समाज/ देश के नागरिकगण को ताकतवर बनती है . ज्ञानम् परम बलम -- "Knowledge is Power."    दुर्भाग्य से हमारे देश की शिक्षा जानबूझकर इस तरह की बनाई गई है कि -- हमारे लोग ज्ञान से वंचित रहे और नेता लोग हमारा शोषण करते रहे.
अभी कुछ दिनों पहले मैंने Legal Aid को और प्रभावी बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी को सुझाव भेजा था. जब 18/12/2015 को हम PMO और कानून मंत्रालय भी गए थे, तो वहां हमें बताया कि हमारा सुझाव उनको बहुत पसंद आया है. अभी हमें जो समझ आ रहा है कि --- हमारी वर्तमान शिक्षा में निम्नलिखित बदलाव की जरुरत है :---
1) -- देश के सभी स्कूल / कॉलेज में गीता, कुरान, बाइबिल और गुरुग्रंथ साहिब के बारे में पढ़ाया जाये ताकि देश का हर बच्चा ये जान सके कि -- अनेकता में एकता वाले देश हिंदुस्तान में, किस धर्म ने क्या कहा है ...??? मूल ज्ञान हर बच्चे को पढ़ाया जाये और कोई ज्यादा ज्ञान लेना चाहे तो वो ज्यादा अध्ययन कर सकता है. इस कदम से देश में जहर फ़ैलाने वाले लोग, धर्मनिर्पक्षता, सहिष्णुता के नाम पर जहर नहीं फैला पाएंगे, क्योकि हर नागरिक को ये पता होगा कि सच क्या है .... ??? और इससे देश में सामाजिक एकता/ भाईचारा को बढ़ावा मिलेगा.
2) -- देश के हर स्कूल और कॉलेज में भारतीय संविधान, इंडियन पैनल कोड (IPC), क्रिमिनल पैनल कोड ( Cr PC ) के बारे में पढ़ाया जाये ताकि देश के हर बच्चे को कानून के बारे में मूलभूत ज्ञान हो और जरुरत पड़ने पर वो इस ज्ञान का इस्तेमाल कर सके.
3) -- इसके अलावा देश के सभी आयोग, विभाग/ उनके उद्देश्य/ जिम्मेदारी/ और गड़बड़ी पर किसकी शिकायत किसे और किस तरीके से करनी है. ...???
4) -- इसके अलावा सुचना का अधिकार, मानव अधिकार, उपभोक्ता कानून, पुलिस की कार्य प्रणाली, प्राथमिकी दर्ज करवाना आदि, FIR, लीगल ऐड जैसे -- मूलभूत कानून/ प्रक्रियाएं, जिनकी हमें जिंदगी में कहीं न कहीं जरुरत पड़ती रहती है. इनके बारे में मूलभूत आवश्यक जानकारी हमारी शिक्षा प्रणाली में शामिल की जानी चाहिए, ताकि देश का हर बच्चा जो स्कूल और कॉलेज से पढ़कर निकलेगा, उसे मूलभूत जानकारी हो. जब कभी उसके परिवार, गली-- मोहल्ले, जानकार-- रिश्तेदार/ परिचित को जरुरत हो, तो उनकी प्रताड़ना और शोषण को रोक जा सके.
5) अध्यापक को सरकारी कागजी कार्यों से मुक्ति के साथ --2 स्कूल में पर्याप्त संसाधनो की व्यवस्था के लिए बजट का इंतजाम. योग्य अध्यापक की नियुक्ति के लिए पारदर्शी प्रणाली को लागु करना , ताकि केवल योग्य लोग ही अध्यापक बन सकें .
-- इस कदम का सबसे बड़ा फायदा :-- हमने देखा है कि -- लोगों को जानकारी न होने के कारण, पुलिस, कानून, न्यायपालिका, प्रशासन और व्यवस्था के दूसरे अंग लोगों का शोषण करते हैं. इस कदम से देश में क्रन्तिकारी और बड़े बदलाव आएंगे. जब एक बच्चा जागरूक होगा तो परिवार और रिश्तेदार अपने आप जागरूक हो जायेंगे. हम उपरोक्त सुझावों पर, आपकी राय और प्रतिक्रियाएं जानना चाहते हैं.

Tuesday, 22 December 2015

Contempt Of Court Act जनता को गुलाम बनाने, डराने और प्रताड़ित करने के लिए अंग्रेजों ने बनाया, अब इसे खत्म करने की जरुरत..........


न्यायपालिका कर रही Contempt Of Court Act का दुरूपयोग, इसलिए इस प्रावधान को खत्म करने की जरुरत ...................

आदरणीय देशवासियों,
 
किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में,  जनता की आवाज को कुचलने की कोई भी प्रथा जैसे कि Contempt Of Court Act का कोई स्थान नहीं होना चाहिए.       ये प्रावधान अंग्रेजों ने देश की जनता को गुलाम रखने के लिए बनाये थे. जिनका प्रयोग,  भ्रष्ट जज अपने कारनामों को बचाने, जनता को डराने और प्रताड़ित करने के लिए कर रहे हैं.  इसलिए,  अब  Contempt Of Court Act को खत्म करने की जरुरत है .

Sunday, 20 December 2015

हिंदुस्तान के जजों को जिम्मेदार बनाने के लिए, जजों की जबाबदेही कानून लाना बेहद जरूरी..................................


आदरणीय देशवासियों,
पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका ने अपनी तानाशाही को बरकरार रखने के लिए,  जो बेशर्मी दिखाई है.  उस से ये साबित हो चूका है कि ---  ये लोग अपने रुतबे को कायम रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.........???   
 ये लोग अपने आप को इस तरह से पेश करना चाहते हैं कि — कोई भी इनसे सवाल जबाब न करे और देश की भोली भाली जनता इनको भगवान् की तरह इनकी पूजा करता रहे. 
 और  ये लोग जो मन में आये वो करते रहे.   
जिम्मेदारी निभाने की बात इनसे न की जाये.  
जनता को डराने के लिए कांतेम्प्त ऑफ़ कोर्ट एक्ट का सहारा लेकर और जेल भेजने का सहारा लेकर लोगों को डराया जाता है.

ये सारी खामियां हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था की देन हैं. जिसने हमें मानसिक गुलाम और डरपोक बनाया है और ज्ञान से वंचित रखकर, शोषण का शिकार बनाया है. शिक्षा व्यवस्था की कमियां दूर करने  के साथ-- साथ,  अब हमें देश में न्यायपालिका के फर्जीवाड़े और निर्दोष  लोगों की प्रताड़ना रोकने के लिए, अब हमें जजों की जबाबदेही सुनिश्चित करने वाला कानून,.............. बनाने की मांग पर जोर देना चाहिए. तभी न्यायपालिका जिम्मेदारी से काम करेगी.

भवदीय
Manojj Kr. Vishwakarma... न्याय--- पुरुष
Social Activist, RTI Activist & Scientist
A Responsible Citizen of Nation.......
09253323118
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Saturday, 19 December 2015

हिंदुस्तान के जज ये चाहते हैं कि इस देश की जनता उनको भगवान की तरह पूजती रहे, लेकिन ये लोग भगवान की जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहते..........

न्यायपालिका अपने रुतबे और ताकत को कायम रखने के लिए, पिछले कुछ समय से बेशर्मी और गैर जिम्मेदारी की हदें पार करते हुए, कोई झिझक या शर्म महसूस नहीं कर रही.
उपर से अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट में झूठे मुक़दमे दर्ज करके, उनको प्रताड़ित करके और लोगो में डर पैदा कर रही हैं. जबकि न्यायपालिका को तो लोगों को ड़र मुक्त करने के लिए काम करना चाहिए. और न्यायपालिका अपने आप को भगवान से भी ज्यादा ईमानदार दिखने का ड्रामा पूरे जोर शोर से कर रही हैं .............


सुप्रीम कोर्ट ने सहारा प्रमुख सुबर्तो राय को किस शिकायत या किस FIR के आधार पर जेल में डाला .............???
ये एक बहुत गहरे राज की बात हैं, ...
मुझे कहीं से पता चला हैं कि -- इनके कई प्रोजेक्ट्स में जजों कि अवैध कमाई लगी हुई थी और काला धन कि सूचि में कई जजों के भी नाम थे. इसलिए, अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा किया.
न्यायपालिका अपने रुतबे और ताकत को कायम रखने के लिए, पिछले कुछ समय से बेशर्मी और गैर जिम्मेदारी की हदें पार करते हुए, कोई झिझक या शर्म महसूस नहीं कर रही......

 http://www.livelaw.in/supreme-court-rejects-subrata-roys-plea-detention/