Saturday, 25 February 2017

अगर सुप्रीम कोर्ट की ये बात सच है तो फिर Justice Markendy Kartzu, Justice Karnan के खिलाफ कॉन्टेम्पट के केस क्यों शुरू किये गए .........

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....





अगर सुप्रीम कोर्ट की ये बात सच है तो फिर जस्टिस मार्केण्डे कार्टजु, जस्टिस Karnan के खिलाफ कॉन्टेम्पट के मुकदमें क्यों शुरू किये गए .........????

https://thelogicalindian.com/news/charge-against-judge/

ये तो बहुत समय पहले ही स्पष्ट हो चूका है कि -- जायज सबूतों के साथ न्यायपालिका की आलोचना करना, contempt नहीं माना जायेगा ।  Then CJI Justice P Sadashivam had said -- Fair criticism of Judiciary is not Crime .

Friday, 24 February 2017

Misuse of Contempt of Court Act by Judiciary.........

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

Please watch this video regarding misuse of Contempt of Court Act by Judiciary to kill voice of victims against Judicial Terrorism...

Share this video to maximum people so that -- They are not victimised like me .


https://youtu.be/NHS72iYRu9U

न्यायपालिका, राजनीतिक पार्टियों, और लोकतन्त्र की खतरनाक सच्चाई को उजागर करता अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री का Suicide note ........

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

मंचों से एक दूसरे के प्रति जहर उगलने वाले कब गलबहियाँ करने लगते हैं, पता ही नहीं चलता। जनता के सामने तमाशा देखने के अलावा कोई चारा नहीं होता और वो हाथ मलते हुए अगले चुनाव का इन्तजार करती रहती है, जब फिर उसे लोकतंत्र के नाम पर ठगा जाना होता है। कभी जिस महबूबा को अलगाववादी मुख्यधारा में अपनी आवाज़ समझते थे, वह आज भाजपा के साथ मुख्यमंत्री हैं। तो सत्ताईस साल- यूपी बेहाल के नारों पर चूना पोत कर कांग्रेस अखिलेश यादव के साथ खड़ी है। शीला दीक्षित कहां गईं, इसका पता ही नहीं। मद्रास में लोकतंत्र के नाम पर जयललिता की मजार पर कसमें खा-खाकर जो कुछ हुआ, वह सब देख ही रहे हैं।

मुख्यमंत्री के सुसाइड नोट ने दिखाया लोकतंत्र को उसका असल चेहरा

इन हालातों में अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल का आत्महत्या के पहले लिखा गया नोट सही मायने में भारतीय लोकतंत्र की व्याख्या करता है, लेकिन अफ़सोस की बात है की उस पर न भाजपा चर्चा कर रही है, न ही कांग्रेस क्योंकि लपेटे में दोनों हैं। और निशाने पर है सुप्रीम कोर्ट भी। आश्चर्य की बात है की सोशल मीडिया पर भी इसकी चर्चा नहीं हो रही है, क्योंकि यहां भी जिन लोगों का वर्चस्व है या कहिए की बड़ी फैनफालोइंग है और अपने-अपने एजेंडे को वायरल कराते हैं, उन लोगों के भी अपने तयशुदा खांचें हैं, जिसके भीतर एक खूंटा गड़ा हुआ है, जिससे उनकी रस्सी बंधी हुई है, जो उन्हें बाहर निकलने नहीं देती।

Guwahati: Arunachal Pradesh Chief Minister Kalikho Pul being felicitated at the inaugural conclave of North East Democratic Alliance (NEDA) at Sankardev Kalakshetra in Guwahati on Wednesday. PTI Photo (PTI7_13_2016_000115B)
कलिखो पुल कीआत्महत्या हमारे लोकतंत्र की पोल खोल कर रखती है।

हम याद करें रोहित वेमुला की आत्महत्या को, तो उनका सुसाइड नोट भी एक दस्तावेज है। उस आत्महत्या को जब एक बड़ा वर्ग सांस्थानिक हत्या कहता है, तो एक पूर्व मुख्यमंत्री के नोट को लोकतान्त्रिक हत्या कहने में क्या आपत्ति है भाई? इस पर तो देश में बड़ी बहस होनी चाहिए। बुद्धिजीवी बनने का ढोंग करने वालों से लेकर आम जनता के बीच भी इसे विस्तार मिलना चाहिए, ताकि जिस लोकतंत्र पर हमें गर्व है वह कितना नीचे जा चुका है सबको पता चले।

क्यों नेतागण देखते हैं अपना राजनीतिक लाभ? अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता!

अभी अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार है और पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं। पेमा ने लोकतंत्र के क्षेत्र में विश्व रिकॉर्ड बनाया है। पहले वह कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे, फिर पार्टी के 44 विधायकों में से 43 के साथ पार्टी छोड़ दी और पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए। विधानसभा अध्यक्ष ने भी इनके साथ ही दल-बदल किया था। कुछ समय बाद इनका फिर ह्रदय परिवर्तन होता है और ‘मोदी जी नीतियों से प्रभावित’ होकर उन 43 में से 33 को लेकर दिसंबर 16 के अाखिर में भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा के पास 12 विधायक पहले से थे और दो निर्दलीय भी साथ आ गए। इस प्रकार 60 सदस्यों वाली विधानसभा में 49 विधायकों के समर्थन से पेमा खांडू भाजपा के मुख्यमंत्री बन गए। पेमा खांडू सन 2005 में कांग्रेस के प्रदेश महासचिव बने थे और 2011 में यशस्वी मुख्यमंत्री दोरजी खांडू की हेलीकाप्टर दुर्घटना में मौत के बाद मंत्रिमंडल में शामिल हुए। फिर विधानसभा के लिए दोरजी खांडू की सीट से निर्वाचित हो गए। दोरजी इनके अपने पिताजी थे, जिनके बारे में कहा जाता है कि फ़ौज के एक साधारण सिपाही थे और रिटायर होने के बाद राजनीति में आए। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी कोठियां ईटानगर, कलकत्ते से लेकर दिल्ली तक में खड़ी हो गईं और चौदह-पंद्रह लाख की जनसंख्या वाले राज्य के इस सीएम पर घोटालों के जरिए हजारों करोड़ इकठ्ठा करने के आरोप लगे। उनके कार्यकाल के कई घोटालों के मामले हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में लंबित हैं। तो उसी कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्री के खानदानी कांग्रेसी बेटे पेमा जी को अचानक मोदी जी की नीतियों से प्रेम हो जाता है और वो विधायकों सहित पाला बदल लेते हैं। दिल्ली की मीडिया में बस एक खबर ही बन जाती है की अरुणाचल में भी भाजपा सरकार।

कलिखो पुल- एक मजदूर से मुख्यमंत्री तक का कठिनाइयों भरा सफर

लेकिन इन सबके बीच चर्चा नहीं होती कलिखो पुल की। पुल भी लम्बे समय तक कांग्रेस और राज्य की सेवा करने के बाद आत्महत्या कर लिए जिनके शुरुआती जीवन का संघर्ष और राजनीति में आने के बाद जो कुछ हुआ वह सबको पढ़ना चाहिए। 47 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बन जाने के बाद सिस्टम से हार कर आत्महत्या कर लेना उतना ही चौंकाता है, जितना इस मामले में दिल्ली से जुड़े उन लोगों की चुप्पी जिनके बारे में कहा जाता है की देश चलाते हैं।

कलिखो पुल का जन्म अरुणाचल प्रदेश के हवाई जिले के वाल्ला बस्ती गाँव में एक काफी गरीब घर में हुआ था। इलाका भी काफी पिछड़ा और गरीब था। उस समय गाँव से शहर पहुँचना भी आसान नहीं था, जिसके चलते बीमार होने पर लोग बिस्तर पर ही दम तोड़ देते थे, क्योंकि चिकित्सा सुविधाओं तक उनकी पहुँच ही नहीं थी। जन्म के तेरह महीने बाद माँ मर गईं और छ साल की उम्र में पिता चल बसे, जिससे पालन-पोषण एक रिश्तेदार ने किया। वहां भी इनका काम दिनभर जंगल से लकड़ी बीनना रहता था और रोटी के बदले परिजनों का उत्पीड़न आम बात थी।

अपने नोट में पुल इस बात का जिक्र करते हुए लिखते भी हैं कि- ‘जन्म से हर कोई खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है, मैंने बचपन से ही जिंदगी से लड़ना सीखा, फिर वह चाहे रोटी की बात हो या हक की।’ जहाँ पल रहे थे, वहां की दुश्वारियों से तंग आ कर एक दिन ये भाग निकले और हवाई जिला मुख्यालय आ गए जहाँ ये एक बढ़ई के हेल्पर बन गए। इस बारे में भी उन्होंने लिखा है की गरीबी और लाचारी की मार झेलते हुए मैंने मजदूरी का काम किया और पैंतालिस रुपए महीने कमाता था। कारपेंटर का वह सामान इनके साथ अंतिम समय तक रहा, ताकि वह समय कभी भूलने न पाएं।


कलिखो पुल के 60 पन्नों के सुसाइड नोट का एक अंश

आप उनकी कथा में एक आम गरीब हिन्दुस्तानी का ही जीवन देखते हैं, लेकिन वो कुछ अलग मिट्टी के भी बने थे और कुछ संयोग ऐसे बनते गए की उन्होंने अपना एक स्थान हासिल किया। राजनैतिक दृष्टि से देखें तो राज्य से सर्वोच्च पद तक भी गए। लेकिन कैसे ?

हवाई में मिडिल स्कूल के हेडमास्टर सिन्हा जी ने स्कूल में रिपेयरिंग के लिए एक दिन बढ़ई बुलाया जिसके साथ हेल्पर के रूप में एक बच्चा भी था। बच्चे को काम करता देख हेडमास्टर साहब ने उससे पढ़ने लिखने की बात की तो उस बच्चे ने पेट के लिए अपनी मजबूरी बतलाई। ये कलिखो पुल थे, सिन्हा जी शाम को परिसर में ही प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चलाते थे, जहाँ वो हर उम्र के लोगों में अक्षर ज्ञान बाँटते थे। पुल उस सायंकालीन कक्षा में आने लगे और शिक्षा के प्रति उनकी लगन से गुरूजी का उत्साह भी बढ़ने लगा, लेकिन समस्या यह थी रेगुलर क्लास में नियम के हिसाब से उनका नाम निचली कक्षा में ही लिखा जाता, जिसके हिसाब से उनकी उम्र बहुत अधिक थी। एक समारोह के लिए स्कूल में शिक्षा मंत्री और साथ में बड़े अधिकारी का आगमन होना था। हेडमास्टर साहब ने अपने मेधावी छात्र पुल को अंग्रेजी में एक भाषण लिख कर दिया और कहा की इसे कायदे से याद करके सुना देंगे तो मंत्री जी के कहने से बड़ी क्लास में नाम लिख लिया जाएगा। कार्यक्रम में पुल ने उस भाषण को बहुत अच्छे से सुनाया और राष्ट्रगान गाने की जिम्मेदारी भी निभाई जिसका नतीजा वही हुआ जो हेडमास्टर चाहते थे। मंत्री जी ने उनका नाम छठी कक्षा में लिखने को कहा और उप कमिश्नर डी.एस.नेगी तो इतने प्रभावित हुए की वह इस बच्चे के युवक हो जाने तक सहयोग करते रहे। हाँ, शिक्षा मंत्री खापिसो क्रोंग वही नेता थे जिन्हें बाद में पुल ने अपने पहले विधानसभा चुनाव में हराया। नियमित स्कूल में दाखिला तो मिल गया लेकिन फिर जिंदगी की गाड़ी चलती कैसे तो इस समस्या का समाधान करने के लिए फिर हेडमास्टर सिन्हा सामने आये। पुल को रात में चौकीदारी का काम मिला और सुबह पांच बजे तिरंगा फहराने और शाम को पांच बजे उतारने का भी काम मिला, जिसके एवज में उन्हें दो सौ बारह रुपए महीने मिलने लगे। इससे उनकी तमाम जरूरतें हल होने लगीं। युवा कलिखो पुल ने कभी सड़क के किनारे खड़े होकर भारत के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को भी एक तिरंगा भेंट किया था, जिस घटना को याद करते हुए उन्होंने बाद में कहा भी था की राजीव जी ने अपने भाषण में तब जो कहा कि दिल्ली से चले एक रुपए में से पच्चीस पैसे ही यहाँ तक आते हैं, तो इस स्थिति को सभी विधायक-मंत्री अब भी बनाए रखना चाहते हैं। हाँ, इस तरह से जिंदगी से लड़ते हुए पचास बसंत देखने से पहले ही मुख्यमंत्री आवास में फंदा बना कर झूल जाने वाले कलिखो पुल का नोट एक अहम दस्तावेज है जिसे पढ़ने के बाद आप निराशा के गर्त में डूब जाएंगे। यहाँ उस आवास के उस खास कर्मचारी की चर्चा नहीं होगी जो पुल के मरने के एक महीने बाद उसी आवास में अपने गले में फंदा डाल कर लटक जाता है। राजनीति कितनी क्रूर होती है यह बता गए पुल।

हेडमास्टर सिन्हा और अधिकारी नेगी के प्रयास से पुल बोर्डिंग स्कूल में आ गए थे और स्कूली शिक्षा खत्म होने के बाद उन्होंने पान-सिगरेट का खोखा लगाया। कारपेंटर के साथ ही ईंट-गारे के मिस्त्री का भी काम करते रहे और ग्रेजुएशन भी करते रहे। अर्थ शास्त्र और फिर लॉ में ग्रेजुएशन किया और इस दौरान छोटे ठेके भी लेने लगे थे। अपनी मेहनत से इन्होने कुछ पूँजी इकठ्ठा कर ली और तीन कमरे का पक्का घर भी बनवा लिया था। फिर राजनीति में आये और पहली बार गेगोंग अपांग सरकार में वित्त मंत्री बने। सन 14 में गठित नबम तुकी सरकार में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय मिला।

भ्रष्ट सिस्टम के आगे हारे मुख्यमंत्री

इन्होंने ड्रग माफिया के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया और स्वास्थ्य विभाग में भी सुधार के कई कार्यक्रम चलाए जिनमें भ्रष्टाचार के खिलाफ इन्होने मोर्चा खोला, जिसका पार्टी के भीतर विरोध होने लगा। अप्रैल 2015 में पार्टी विरोधी हरकतों के आरोप में ये पार्टी से निकाल दिए गए, जिसके अगले दिन इन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके जन वितरण प्रणाली में हजारों करोड़ के खाद्यान घोटाले का आरोप लगाया। इस मामले में कांग्रेसी मुख्यमंत्री दोरजी और उनके बेटे अभी वाले भाजपाई मुख्यमंत्री पेमा खांडू का भी नाम है और तमाम मुकदमे चल रहे हैं। यह वही कमाऊ विभाग है, जो उत्तर प्रदेश में सपा सरकार में राजा भइया के पास रहता है। शायद आपको याद हो कि मुलायम सरकार में राजा भइया के खुद पीए ने ही मंत्री जी और उनकी पत्नी के ऊपर घोटाले का आरोप लगाया था। जांच भी हुई थी और अखिलेश सरकार में भी मंत्रालय ठाकुर साहब को ही मिला। देश का शायद ही कोई राज्य हो, जिसमें इस विभाग में घोटाले न होते हों। लेकिन होता जाता कुछ नहीं है, क्योंकि इसमें गरीबों के हिस्से का अन्न हजम किया जाता है।

एक मुख्यमंत्री की लोकतांत्रिक हत्या!

जब कलिखो पुल ने बगावत की तो उनके साथ कांग्रेस के काफी विधायक आ गए और पांच बार कांग्रेस विधायक रहे कलिखो पुल मुख्यमंत्री बन गए। ये साढ़े चार महीने मुख्यमंत्री रहे, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नबाम सरकार की बर्खास्तगी को अवैध करार दिया, यानी उस के बाद बनी पुल सरकार ही निरस्त हो गई और पूरे देश में लोकतंत्र के विजय की खबरें चलने लगीं। लोकतंत्र की विजय के प्रतीक में नबाम तुकी फिर मुख्यमंत्री बन गए। यह अलग बात है की कुछ ही दिनों बाद पार्टी में बढ़ रहे असंतोष को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने तुकी की जगह पेमा खांडू को मुख्यमंत्री बना दिया जो विधायकों समेत आज भाजपा में शामिल होकर राज्य में कमल खिला रहे हैं। कहाँ है इस कहानी में लोकतंत्र? सामने से दिखने वाले लोकतंत्र के पीछे की कहानी पुल ने अपने नोट में लिखी है, जिसे डाइंग डिक्लेरेसन क्यों नहीं माना जाना चाहिए ?

चीफ जस्टिस से लेकर राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री हैं मौन, इस मामले पर क्यों साधी हुई है चुप्पी?

9 अगस्त को पुल की आत्महत्या की खबर जब सामने आई तो भीड़ ने उनके बंगले से सटे मंत्रियों के बंगले में तोड़फोड़ की, क्योंकि उसे लग रहा था की पुल जैसा आदमी आत्महत्या कर ही नहीं सकता। पुल के कमरे से ‘मेरे विचार’ नामक 60 पेज का नोट मिला, जिसे पढ़ने के बाद राज्यपाल राजखोवा ने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर उसमें दर्ज ब्योरों और पुल की मौत की जांच कराने की मांग की। नतीजा यह रहा की राज्यपाल हटा दिए गए।

अब वह नोट जनता के सामने आ गया है। क्विंट और वायर की साईट पर आने के बाद अखबार भी उस पर लिख रहे हैं। पुल की पत्नी दांगविम्सई पुल दिल्ली में प्रेस क्लब में पत्रकारों के सामने सीबीआई जांच की मांग कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से लेकर राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री को पत्र लिख रही हैं, लेकिन सब मौन हैं। तमाम गैरजरूरी मुद्दों पर भी ललकार लगाने वाले प्रधानमंत्री खामोश हैं और कांग्रेस पार्टी सहित देश बदलने के सपने दिखाने वाले राहुल जी भी अभी तक कुछ नहीं बोले हैं, तो आखिर में बोलेगा कौन ? करुणानिधि और मुलायम सिंह ? हाँ, चीफ जस्टिस ने जवाब भेज दिया है कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है और पेमा खांडू ने कैबिनेट बैठक करके पुल की मौत पर दुःख व्यक्त करते हुए उनकी तरफ से लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद बता दिया है और यह भी कहा है की वह किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार हैं। सवाल है कि जाँच करेगा कौन ? वही तंत्र न जिससे निराश होकर बर्खास्तगी के महीने भर के भीतर पुल ने आत्महत्या कर ली थी। अब बात करते हैं उनके नोट की-

ये है दिल दहला देने वाली हमारे लोकतंत्र की कड़वी सच्चाई

अपने जीवन के संघर्षों की कथा बताने के बाद पुल लिखते हैं की जब दिसंबर 94 में वह राजनीति में आए तो उन्होंने अपना ट्रेडिंग लाइसेंस सरेंडर कर दिया, क्योंकि राजनीति में आ जाने के बाद व्यवसाय करना उनके हिसाब से ठीक नहीं था। सबसे पहले मुख्यमंत्री बनने का मौका 2007 में आया, लेकिन ठुकरा दिया जिसके बाद 2011 में भी अवसर था, लेकिन मुझे लगा कि यहाँ सब लोग एक दूसरे की भलाई में ही लगे हैं, जिनके लिए जनता का कोई मतलब नहीं। केवल अपनी कमाई का ही ख्याल रखना है। मुझे लगता था कि मेरे साथी मंत्री और विधायक मुझे सिस्टम से, नीति से, कानून से और संविधान से चलने नहीं देंगे। तीसरी बार मैंने मौका स्वीकार कर लिया, लेकिन साथियों को यह बात मंजूर नहीं हुई क्योंकि उनके लिए विधायक बनने का मतलब कुछ और था। 23 साल के राजनैतिक जीवन में मैंने देखा है कि सारे फैसले राजनीति की नजर से ही लिए गए और विधायक तथा मंत्री हमेशा आपस में हिसाब-किताब लगा कर एक दूसरे को लाभ देने एवं खुश करने में भी लगे रहे।

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देश के नेताओं की पोल खोलता यह सुसाइड नोट

आगे उन्होंने ने सुसाइड नोट में लिखा कि साढ़े चार महीने के कार्यकाल में मैंने मंत्रियों को ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए पैसे लेने से मना किया। राज्य के हित में समस्त सरकारी कार्यों में कमीशन लेने पर रोक लगाने की कोशिश की। पंद्रह लाख की जनसंख्या वाले राज्य में साठ विधायक हैं, जिनमें सबको मंत्री ही बनना है। जनता को इनसे पूछना चाहिए की इन्हें पैसा छापने की मशीन मिल जाती है क्या? दोरजी खांडू अपने करोड़ों रुपए छोड़ कर चले गए। इन पैसों से न तो जिंदगी खरीदी जा सकती है, न ही दूसरी दुनिया में ले जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट में केस की बाबत लिखते हैं कि मेरे खिलाफ फैसला जो आया तो उसके लिए नबाम तुकी और पेमा खांडू ने नब्बे करोड़ रुपए खर्च किए। मेरे पक्ष में फैसला देने के लिए मुझसे सम्पर्क किया गया और मुझसे 86 करोड़ रुपए मांगे गए। मैं कहाँ से देता, मैंने भ्रष्टाचार किया नहीं था, कमाया नहीं था। अपनी सरकार बचाने के लिए जनता के पैसों का दुरुपयोग क्यों करता ?……… अब यहाँ उन्होंने कुछ जजों और देश के कुछ बड़े नेताओं का भी जिक्र किया है। इसको पढ़ते समय आप याद करिए मुलायम सिंह का वह बयान जिसमें वह कहते हैं की अमर सिंह ने उन्हें जेल जाने से बचाया था। अगर आपकी अक्ल किसी पार्टी के खूंटे बंधी है, तो गडकरी का शरद पवार के बारे में पुराना बयान याद कर लीजिए कि चार काम हम उनके करते हैं, तो चार काम वो हमारे। और फिर याद करिए कि जिस पार्टी को मोदी जी ने नेचुरल करप्ट पार्टी कहा था, उसके मुखिया को भारत रत्न के बाद देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान दे दिया। क्या ढाई साल में सब माफ हो गया?

“कानून पूरी तरह खुद ही न्याय का दलाल बन बैठा है”

पुल पीडीएस घोटाले की बात लिखते हुए कहते हैं कि दोरजी जिन्दा रहते तो जेल जाते। साथ ही अभी जो मुख्यमंत्री हैं, वो भी एक दिन जेल जाएंगे, क्योंकि सरकारी वितरण प्रणाली का समूचा चावल असम में बेच दिया गया और गाँवों में एक दाना नहीं पहुंचा। आपदा राहत घोटालों की भी उन्होंने खूब चर्चा की है कि कैसे केंद्र से आती सारी मदद डकार लेते रहे नेता लोग और क़िस्त दिल्ली तक पहुंचाई जाती रही। हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स में भी हो रहे खेल की चर्चा उनके पत्र में हैं। उन्होंने खुद दोरजी के दबाव में दिल्ली में कांग्रेस कोषाध्यक्ष के पास करोड़ों पहुंचाने की बात कही है। आलाकमान और मीडिया भी पूरी तरह इसी भ्रष्टाचार के धन से खरीदी जा चुकी है। सभी योजनाओं में सत्तर प्रतिशत तक की दलाली की बात लिखते हुए वो अपनी निराशा बता रहे हैं कि वो लाचार होकर इस सिस्टम में कुछ कर ही नहीं सकते। लिखते हैं कि जिनके पास अपना घर भी नहीं था, वो विधायक बनते ही कोठियां कहां से खड़ी कर लेते हैं। यह सब पढ़ते हुए आप को अपने इलाके के नेताओं की तस्वीरें दिखने लगेंगी। शायद यही कारण की ‘माँ भारती के लाल’ होते हुए भी पुल के ऊपर कोई चर्चा नहीं होती। पुल ने लिखा है कि सरकार बचाने के लिए विधायकों ने पंद्रह-पंद्रह करोड़ रुपए मांगे। मैं कहाँ से देता? आज नेता सेवक नहीं दलाल बन गए हैं। सब बिजनेसमैन हो चुके हैं। कानून से भी पूरी तरह निराश होते हुए लिखते हैं कि आज कानून पूरी तरह खुद ही न्याय का दलाल बन बैठा है।

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आत्महत्या की ये दुखद घटना हमारे ‘सच्चे’ लोकतंत्र को बयां करती है

राज्यों और केंद्र के सम्बन्धों की भी बहुत चर्चा होती है और एक आम राय है कि दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार रहने पर सहूलियत होती है। ऐसा मानने वालों को निराशा होगी, क्योंकि पुल अपने नोट में लिखते हैं कि राज्य को केंद्र से एडवांस लोन लेने के लिए सीएम के कहने पर एक केन्द्रीय मंत्री को छ: करोड़ देना पड़ा। पार्टी फंड और केन्द्रीय मंत्रियों को उनके हिस्से अलग से पहुंचाने पड़ते थे। अब आप सोचिए कि यह कैसा लोकतंत्र है। और उठाए रहिए अपनी-अपनी पार्टियों के झंडे। गैर सरकारी संस्थाओं के बारे में भी उन्होंने अपने नोट में लिखा है और कहते हैं कि ये लोग केवल काम में अडंगा लगाने और उसके बाद दलाली करके अपनी जेब भरने में ही लगे हुए हैं। यह नोट पढ़ते समय किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को बहुत धक्का लगेगा, क्योंकि अभी तक हम लोग समझते थे कि आम जनता ही त्रस्त है, लेकिन देख लीजिए कि सत्ता के शिखर पर भी क्या हालत है। याद करिए हालिया मद्रासी लोकतंत्र में रिसॉर्ट में ठेले गए विधायकों के बारे में जो लोग माननीय समझे जाते हैं।

मुझे पक्का भरोसा है कि कलिखो पुल ने जितने भी आरोप लगाए हैं उस पर किसी नेता में हिम्मत नहीं है कि मंच से कुछ बोल सकें, पत्रकारों के सवालों का जवाब दे सकें, क्योंकि ख़ून के छींटे सबके ऊपर पड़े हैं। एक मजदूर से मुख्यमंत्री तक की यात्रा और फिर आत्महत्या तक की कहानी है हमारे सच्चे लोकतंत्र की। इस यात्रा को समझ लेने के बाद एक पल को आप भी उदास हो जाएंगे और भूल जाएंगे अपने-अपने नेताओं की तमाम दलीलों को और आपको सारे के सारे अपराधी दिखने लगेंगे। कायदे से देखिए तो सही और कलिखो पुल की यात्रा में आप भी कहीं किनारे खड़े दिखेंगे। वो तो यह लिखते हुए चले गए की “जनता समझे, जागे। समाज, राज्य और देश में हो रहे गंदे नाटक और लूटपाट और भ्रष्ट तंत्र को समझे।” सवाल है कि जनता समझेगी? उसके हाथ में क्या है? हाथ में स्याही लगवा कर बटन दबा कर बैठ जाने के सिवाय ?
http://www.gapagap.com/arunachal-pradesh-former-cm-kalikho-pul-suicide/3638/

जेल में कैदियों का शोषण , एक हजार करोड़ से ज्यादा की इंडस्ट्री .........

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....
आईये ..... जाने हिंदुस्तान की जेलों में किस प्रकार होता है कैदियों का शोषण ......
https://youtu.be/lC-_Rtv9lPg

सुप्रीम कोर्ट को देश की जनता से शिकायत लेना बंद कर देना चाहिये ..क्योंकि .......

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....
सुप्रीम कोर्ट में रोजाना 4000 से 5000 शिकायतें रोजाना आती हैं , उन पर कोई कार्यवाही न करके केवल दो लाइन का बहाना लिख  दिया जाता है कि -- ये शिकायत जनहित याचिका के नियम अनुसार नहीं है …...... या फिर ....... ये बहाना लिखेंगे कि -- इस शिकायत के अंश जनहित याचिका के नियम अनुसार नहीं हैं।  हमनें सुप्रीम कोर्ट से उसके ही 22 आदेशों के अनुसार कार्यवाही की जानकारी मांगी तो नया  बहाना.....
सुप्रीम कोर्ट में , पब्लिक फण्ड से मजे लूटने वाले जजों की मानसिकता जब जिम्मेदारी से काम करने की है ही नहीं तो सुप्रीम कोर्ट में जनता की शिकायत लेना ही बन्द क्यों नहीं कर देते .....???  ताकि इस देश के लोग न्याय की उम्मीद में अपना कीमती वक्त और  पैसा बर्बाद न करें ।  कृपया इस वीडियो को जरूर देखें , दूसरे पीड़ित लोगों तक  पहुँचाने में मदद करें और अपनी प्रतिक्रियाएं देना न भूलें ।



Tuesday, 7 February 2017

If you are victim of injustice, corruption, false case ,.... share your story with whole World ........

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....


Respected Indian Citizens,

We are writing a book ,   Victims of Judicial Corruption to  awaken the common people ( those who have not seen the real picture of Extortion and Torture  of Judicial System ), about the  Harassment , Social, Physical , Mental Torture, Financial Extortion of Innocent people ( including  Elderly  Parents, Youth, Children )  due to False cases registered by Police, and then further  attitude of  Judiciary regarding disposal of false cases registered by  selfish motive. 

Why we are writing this book .....???

We are writing this book to bring the Truth of Courts and Judges in open .
Secondly, Society will understand you better, when they know your situation and position.
Thirdly, This awakening will help to bring Judges accountability Bill, which will control frauds of Judges.
Fourth, reasons to prevent Suicides happening due to lack of emotional support from Society .
Fifth, reason is to make People more Powerful with Knowledge, which is must for Healthy Society.

We have decided to select Best 100  stories.  If you feel that -- Whatever happened to you and your family due to False cases, should not happen with any other family or person,  then you are sincerely requested to send complete details , with eye opening evidences ( like Photo, documents or any other documentary evidence ). 
Your details should be neatly typed or writen in not more then 500 words , along with one affidavit  of declaration that -- These documents are belonging to you and nothing has been concealed.

For any further details you can call us on 09253323118  or email at  mkvish2003@rediffmail. com

तीसरी पुस्तक उस जानकारी के बारे में है जो हमें स्कूल कॉलेज में पढाई ही नहीं जाती ........

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....


अभी कई दिनों से हम गहराई से उन कारण पर विचार कर रहे हैं , जिनकी वजह से देश की अदालतों में मुकदमें धड़ा धड़ बढ़ रहे हैं , लेकिन कम नहीं हो रहे .......न्याय के नाम पर एक झूठा दिखावा या  नाटक जमकर किया जा रहा है ।

आदरणीय देशवासियों ,

निर्दोष लोगों की प्रताड़ना रोकने , देशवासियों को न्यायपालिका , पुलिस और व्यवस्था की असली समस्या से अवगत और जागरूक करने के उद्देश्य से हम 3 किताब लिख रहे हैं ।

-- दूसरी पुस्तक में हम मेरे खुद के अनुभव के बारे में लिख रहे हैं , झूठा केस, जेल, पुलिस, जज किस हद तक फर्जीवाड़े करते हैं ।
इस सच के सामने आने से देश दुनिया के करोड़ों लोगों को अन्याय, अत्याचार, झूठे मुकदमों से लड़ने की दिशा  और प्रेरणा मिलेगी । जो लोग मानसिक दबाब के चलते आत्महत्या कर रहे हैं , उनको हम मरने से बचा सकेंगे । इसके आलावा जजों के फर्जीवाड़े जोकि देश की जनता के सामने आ ही नहीं पाते, वो सच दुनिया के सामने आएगा तो जजों के फर्जीवाड़ों को रोकने के लिए जजों की जबाबदेही कानून भी बन सकेगा ।

-- तीसरी पुस्तक हम उस जानकारी पर लिख रहे हैं जोकि हमें स्कूल , कॉलेज में कभी पढ़ाई ही नहीं जाती, जिसके चलते निर्दोष लोगों का शोषण होता है। अगर ये सब जानकारी स्कूल कॉलेज में बच्चों को सीखा दी जाएं , तो वे अगले 50 साल तक इस जानकारी का सदुपयोग करेंगे ।

इस कदम  से न केवल भरष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी, बल्कि व्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव भी आएगा । जापान , स्विट्जरलैंड जैसे देश ऐसे ही ताकतवर हुए हैं ।
इस संदर्भ में आप सभी के सुझाव और प्रतिक्रियाएँ सादर आमंत्रित हैं ।

दूसरी पुस्तक में हम अपने केस, पुलिस , जेल, न्यायपालिका के अनुभव के बारे में दुनिया को अवगत करवाएंगे .........

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

अभी कई दिनों से हम गहराई से उन कारण पर विचार कर रहे हैं , जिनकी वजह से देश की अदालतों में मुकदमें धड़ा धड़ बढ़ रहे हैं , लेकिन कम नहीं हो रहे .......न्याय के नाम पर एक झूठा दिखावा या  नाटक जमकर किया जा रहा है ।

आदरणीय देशवासियों ,

निर्दोष लोगों की प्रताड़ना रोकने , देशवासियों को न्यायपालिका , पुलिस और व्यवस्था की असली समस्या से अवगत और जागरूक करने के उद्देश्य से हम 3 किताब लिख रहे हैं ।

-- दूसरी पुस्तक में हम मेरे खुद के अनुभव के बारे में लिख रहे हैं , झूठा केस, जेल, पुलिस, जज किस हद तक फर्जीवाड़े करते हैं ।
इस सच के सामने आने से देश दुनिया के करोड़ों लोगों को अन्याय, अत्याचार, झूठे मुकदमों से लड़ने की दिशा  और प्रेरणा मिलेगी । जो लोग मानसिक दबाब के चलते आत्महत्या कर रहे हैं , उनको हम मरने से बचा सकेंगे । इसके आलावा जजों के फर्जीवाड़े जोकि देश की जनता के सामने आ ही नहीं पाते, वो सच दुनिया के सामने आएगा तो जजों के फर्जीवाड़ों को रोकने के लिए जजों की जबाबदेही कानून भी बन सकेगा ।

-- तीसरी पुस्तक हम उस जानकारी पर लिख रहे हैं जोकि हमें स्कूल , कॉलेज में कभी पढ़ाई ही नहीं जाती, जिसके चलते निर्दोष लोगों का शोषण होता है। अगर ये सब जानकारी स्कूल कॉलेज में बच्चों को सीखा दी जाएं , तो वे अगले 50 साल तक इस जानकारी का सदुपयोग करेंगे ।

इस कदम  से न केवल भरष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी, बल्कि व्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव भी आएगा । जापान , स्विट्जरलैंड जैसे देश ऐसे ही ताकतवर हुए हैं ।
इस संदर्भ में आप सभी के सुझाव और प्रतिक्रियाएँ सादर आमंत्रित हैं ।

अगर आप अन्याय, अत्याचार ,भरष्टाचार के शिकार है, तो हम आपकी कहानी दुनियाभर तक पहुंचाएंगे ............

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....



निर्दोष लोगों की प्रताड़ना रोकने , देशवासियों को न्यायपालिका , पुलिस और व्यवस्था की असली समस्या से अवगत और जागरूक करने के उद्देश्य से हम 3 किताब लिख रहे हैं ।

-- पहली पुस्तक में हम देश के उन लोगों के बारे में दुनियाभर को अवगत करवाएंगे जिनके साथ अन्याय हुआ , भरष्टाचार के चलते न्याय से वंचित रखे गए । इस पुस्तक से देश के लोगों को उन पहलुओं के बारे में पता चलेगा, जिनके बारे में मीडिया कभी बात करता ही नहीं ।  देश की भोली भली जनता को बहुत सारा सच पता ही नहीं चल पाता । इस पुस्तक के माध्यम हम छुपे हुए फर्जीवाड़ों को समाज के सामने लाएंगे ।  देश के सभी ऐसे पीड़ित लोगों से उनकी कहानी आमंत्रित कर रहे हैं ।  अगर आप खुद या आपकी जानकारी में कोई व्यक्ति ऐसा है जिसके साथ घोर अन्याय हुआ है, और वो समाज के सामने आना चाहिए तो आप उनके बारे में 500 शब्दों में साफ़ सुथरा लिखा हुआ या टाइप करवाकर ( एक हिंदी और एक अंग्रेजी में ) पासपोर्ट फ़ोटो और एक एफिडेविट के साथ ( जिसमे ये लिखा हो कि ये घटना मेरे साथ हुई है और मैंने इसमें सच लिखा है और कुछ छुपाया नहीं है ), हमें भेजें ।

पहली पुस्तक में हम देश के उन लोगों के बारे में दुनियाभर को अवगत करवाएंगे........

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....


निर्दोष लोगों की प्रताड़ना रोकने , देशवासियों को न्यायपालिका , पुलिस और व्यवस्था की असली समस्या से अवगत और जागरूक करने के उद्देश्य से हम 3 किताब लिख रहे हैं ।

-- पहली पुस्तक में हम देश के उन लोगों के बारे में दुनियाभर को अवगत करवाएंगे जिनके साथ अन्याय हुआ , भरष्टाचार के चलते न्याय से वंचित रखे गए । इस पुस्तक से देश के लोगों को उन पहलुओं के बारे में पता चलेगा, जिनके बारे में मीडिया कभी बात करता ही नहीं ।  देश की भोली भली जनता को बहुत सारा सच पता ही नहीं चल पाता । इस पुस्तक के माध्यम हम छुपे हुए फर्जीवाड़ों को समाज के सामने लाएंगे ।  देश के सभी ऐसे पीड़ित लोगों से उनकी कहानी आमंत्रित कर रहे हैं ।  अगर आप खुद या आपकी जानकारी में कोई व्यक्ति ऐसा है जिसके साथ घोर अन्याय हुआ है, और वो समाज के सामने आना चाहिए तो आप उनके बारे में 500 शब्दों में साफ़ सुथरा लिखा हुआ या टाइप करवाकर ( एक हिंदी और एक अंग्रेजी में ) पासपोर्ट फ़ोटो और एक एफिडेविट के साथ ( जिसमे ये लिखा हो कि ये घटना मेरे साथ हुई है और मैंने इसमें सच लिखा है और कुछ छुपाया नहीं है ), हमें भेजें । 

निर्दोष लोगों की प्रताड़ना रोकने , देशवासियों को न्यायपालिका , पुलिस और व्यवस्था की असली समस्या से अवगत और जागरूक करने के उद्देश्य से हम 3 किताब लिख रहे हैं ......

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

अभी कई दिनों से हम गहराई से उन कारण पर विचार कर रहे हैं , जिनकी वजह से देश की अदालतों में मुकदमें धड़ा धड़ बढ़ रहे हैं , लेकिन कम नहीं हो रहे .......न्याय के नाम पर एक झूठा दिखावा या  नाटक जमकर किया जा रहा है ।

आदरणीय देशवासियों ,

निर्दोष लोगों की प्रताड़ना रोकने , देशवासियों को न्यायपालिका , पुलिस और व्यवस्था की असली समस्या से अवगत और जागरूक करने के उद्देश्य से हम 3 किताब लिख रहे हैं ।

-- पहली पुस्तक में हम देश के उन लोगों के बारे में दुनियाभर को अवगत करवाएंगे जिनके साथ अन्याय हुआ , भरष्टाचार के चलते न्याय से वंचित रखे गए । इस पुस्तक से देश के लोगों को उन पहलुओं के बारे में पता चलेगा, जिनके बारे में मीडिया कभी बात करता ही नहीं ।  देश की भोली भली जनता को बहुत सारा सच पता ही नहीं चल पाता । इस पुस्तक के माध्यम हम छुपे हुए फर्जीवाड़ों को समाज के सामने लाएंगे ।  देश के सभी ऐसे पीड़ित लोगों से उनकी कहानी आमंत्रित कर रहे हैं ।  अगर आप खुद या आपकी जानकारी में कोई व्यक्ति ऐसा है जिसके साथ घोर अन्याय हुआ है, और वो समाज के सामने आना चाहिए तो आप उनके बारे में 500 शब्दों में साफ़ सुथरा लिखा हुआ या टाइप करवाकर ( एक हिंदी और एक अंग्रेजी में ) पासपोर्ट फ़ोटो और एक एफिडेविट के साथ ( जिसमे ये लिखा हो कि ये घटना मेरे साथ हुई है और मैंने इसमें सच लिखा है और कुछ छुपाया नहीं है ), हमें भेजें ।

-- दूसरी पुस्तक में हम मेरे खुद के अनुभव के बारे में लिख रहे हैं , झूठा केस, जेल, पुलिस, जज किस हद तक फर्जीवाड़े करते हैं ।
इस सच के सामने आने से देश दुनिया के करोड़ों लोगों को अन्याय, अत्याचार, झूठे मुकदमों से लड़ने की दिशा  और प्रेरणा मिलेगी । जो लोग मानसिक दबाब के चलते आत्महत्या कर रहे हैं , उनको हम मरने से बचा सकेंगे । इसके आलावा जजों के फर्जीवाड़े जोकि देश की जनता के सामने आ ही नहीं पाते, वो सच दुनिया के सामने आएगा तो जजों के फर्जीवाड़ों को रोकने के लिए जजों की जबाबदेही कानून भी बन सकेगा ।

-- तीसरी पुस्तक हम उस जानकारी पर लिख रहे हैं जोकि हमें स्कूल , कॉलेज में कभी पढ़ाई ही नहीं जाती, जिसके चलते निर्दोष लोगों का शोषण होता है। अगर ये सब जानकारी स्कूल कॉलेज में बच्चों को सीखा दी जाएं , तो वे अगले 50 साल तक इस जानकारी का सदुपयोग करेंगे ।

इस कदम  से न केवल भरष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी, बल्कि व्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव भी आएगा । जापान , स्विट्जरलैंड जैसे देश ऐसे ही ताकतवर हुए हैं ।
इस संदर्भ में आप सभी के सुझाव और प्रतिक्रियाएँ सादर आमंत्रित हैं ।

Monday, 6 February 2017

आईये जाने ....!!! किन परिस्थितियों में, जज जमानती या गैर जमानती वारंट जारी कर सकता है .......???

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....


आपके खिलाफ कोर्ट में कोई मुकदमा चल रहा है तो कभी ना कभी इस समस्या से वास्ता पड़ा  ही होगा । लेकिन आजकल अदालतों में न  केवल वकील की लापरवाही , बल्कि जजों द्वारा जानबूझकर प्रताड़ित करने, जेल भेजकर शोषण करने की नियत से भी देश की अदालतों में रोजाना , लाखों लोग वारंट के दुरुपयोग के शिकार होते हैं, बिना कसूर के जेल भेजा  जाता है , जबकि रसूख वाले या सम्पन्न लोगों को पैसे के दम पर , जमानत दे दी जाती है।

असलियत ये है कि --- देश के कोर्ट अब न्याय के मंदिर नहीं रहे ...... ये अब अपनी ताकत का इस्तेमाल करके , अवैध वसूली के माध्यम बन चुके हैं और इस काम में वारंट की बहुत बड़ी भूमिका होती है । पुलिस तो झूठे मुक़दमे दर्ज करके जेल भेजने के लिए मशहूर है ही, लेकिन जज कोर्ट में उससे कई गुना खतरनाक अपराध कर रहे हैं ।

 हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज भी , अपने जजों के फर्जीवाड़ों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करते ...... कारण सभी समझ ही गये होंगे ....!!!

निर्दोष लोगों को शोषण और प्रताड़ना से बचाने के लिए हम आपको आज वारंट के बारे में जानकारी दे रहे हैं । आपका ये ज्ञान कहीं न कहीं , किसी न किसी पीड़ित को बचाने में मददगार साबित होगी ।

वारंट जारी करने का उद्देश्य :--- सम्मन , जमानती या गैर जमानती वारंट का उद्देश्य केवल किसी व्यक्ति की कोर्ट में उपस्थिति को सुनिश्चित करना होता है ।
लेकिन आजकल वारंट जारी करके,  अवैध वसूली करना,  एक बहुत बड़ी इंडस्ट्री बन चुकी है ।  इसी लालच, के चलते कई बार तो आपके कोर्ट में उपस्थित होते हुए भी जज, जानबूझकर वारंट जारी करके, बिना किसी कसूर के ही जैल भेज देते हैं । जबकि जज अपने गलत वारंट के आर्डर को कैंसल या  Recall भी कर सकता है ।

 ऐसे हालातों में कोर्ट के बरामदे में लगे CCTV कैमरा की फुटेज को Preserve करवाकर आप सच को साबित कर सकते हैं ।  ये वीडियो रिकॉर्डिंग 30 दिनों तक स्टोर रहती है । और इसका कोई शुल्क भी नहीं लगता ।

और विशेष बात ये भी है कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ किसी भी प्रकार का वारंट जारी करने से पहले, जज को ये भी सुनिश्चित करना होता है कि  वो केस किस उद्देश्य से दर्ज करवाया गया था ......???   और इसके आलावा सारी परिस्थितियों के बारे में सोच समझकर ही वारंट जारी करने चाहिये ।

इसमें नियम अनुसार सबसे पहले सम्मन से बुलाना चाहिए, जब सम्मन कामयाब  नहीं हो तो जमानती वारंट, जारी करना चाहिये ।  जब वो भी कामयाब नहीं हो , तब ही गैर जमानती वारंट जारी करने चाहिए ।

किसी के खिलाफ वारंट जारी करते वक्त जज को आँख मूंदकर नहीं, बल्कि सोच समझकर , जरूरत पड़ने पर ही जारी करने चाहिए , क्योंकि गलत वारंट जारी होने से व्यक्ति की आज़ादी का हनन होता है, जोकि संविधान द्वारा दिया गया मौलिक अधिकार है ।

किसी प्रकार की मदद के लिए संपर्क कर सकते है ।

Sunday, 5 February 2017

397 दिन, 367 पोस्ट, के साथ 200,000 विज़िटर्स,...... सहयोग और समर्थन के लिए आप सभी देशवासियों का आभार ....... शुक्रिया ......!!!

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

आदरणीय देशवासियों, ,

397 दिन,  367  पोस्ट  के साथ,   और बिना किसी Paid Promotion के,  आज आपके ब्लॉग Let's Change India ने 200,000  विज़िटर्स का आंकड़ा पार कर लिया है । आपने जो विशवास  किया और समर्थन दिया , हम उसकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए हर सम्भव प्रयास करते रहेंगे ।  हमें विशवास है कि -- इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने के लिए आप अपने सुझाव और प्रतिक्रियाएं हमें देते रहेंगे । 

 आप सभी का धन्यवाद .……....शुक्रिया .......!!! 


Saturday, 4 February 2017

BSF के तेजबहादुर सिंह को न्याय दिलवाने और सकुशल रिहाई के लिए , क्या हम छोटी सी कोशिश नहीं कर सकते ......???

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

हमें BSF के तेजबहादुर सिंह की सकुशल रिहाई और न्याय चाहिए , इसके लिए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर जी, प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी जी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी साहब, से निवेदन है कि --  देशहित को देखते हुए , खुद संज्ञान लेकर , दोषी अधिकारीगण के खिलाफ कार्यवाही करते हुए, समस्या के समाधान के लिए दखल दें ।

देशवासियों से अपील --- ताकि BSF के तेजबहादुर सिंह का संघर्ष बेकार न जाये .....

आदरणीय देशवासियों ,
जिस प्रकार आप सभी ने  BSF के तेजबहादुर सिंह की हिम्मत को समर्थन दिया, अब उनको सकुशल रिहाई,  और सेना के किसी भी झूठे मुकदमे और आर्थिक बंदिश से मुक्त करवाने के लिए आप सभी से निवेदन हैं कि -- ये सन्देश पत्र, ईमेल, सोशल मीडिया के माध्यम से मोदी जी , रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति जी को भेजें .....
    देश का एक जिम्मेदार नागरिक ..........

देशवासियों से अपील --- ताकि BSF के तेजबहादुर सिंह का संघर्ष बेकार न जाये .......!!!

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....
आदरणीय देशवासियों ,
जिस प्रकार आप सभी ने  BSF के तेजबहादुर सिंह की हिम्मत को समर्थन दिया, अब उनको सकुशल रिहाई,  और सेना के किसी भी झूठे मुकदमे और आर्थिक बंदिश से मुक्त करवाने के लिए आप सभी से निवेदन हैं कि -- ये सन्देश पत्र, ईमेल, सोशल मीडिया के माध्यम से मोदी जी , रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति जी को भेजें .....
    देश का एक जिम्मेदार नागरिक ......


📡📡📡      सेना अध्यक्ष विपिन रावत कहते हैं कि अगर सैनिकों को कोई परेशानी है तो वो मुझे सुझाव लिखित में भेजें..  लेकिन सर जी हमारे सुझाव और शिकायत आप तक पहुंचने कौन देगा..?
आप भी यहीं से तो वहां तक पहुंचे हैं...  जब सारे officers एक हो गये तो आप भी उन्हीं का साथ दोगे... मैने ये देखा है tv डिवेट में.... मैं यहाँ भारतीय सेना.. Indian army की बात कर रहा हूँ सिर्फ...  चाहे bsf हो, itbp हो, ssb हो, crpf हो,  सब जगह सैनिकों का शोषण होता है,  शारीरिक तौर पर भी और मानसिक तौर पर भी...  ये कैसे होता है..  मैं आपको बताता हूँ....
(1). अगर सैनिक के घर पर सैनिक के मां बाप बिमार होते हैं, और उस दौरान घर पर उस  सैनिक की जरूरत घरवालों को सेना से ज्यादा होती है तो छुट्टी के लिए जब सैनिक आफिसर के सामने ( interview)  में जाता है तो सवाल जवाब कुछ यूं होते हैं..
आफिसर :- क्या प्रोब्लम है?
जवान :- सर मेरी माँ बिमार है, मुझे छुट्टी चाहिए।
आफिसर :- आपको किसने बताया कि मां बिमार है?
जवान :- सर पापा का फोन आया था।
आफिसर :- तेरा बाप डाक्टर है क्या?
(सोचिये जरा आप भी....)
(2).आफिसर :- ठीक है, तू छुट्टी जा अगर सच में तेरी मां बिमार है तो तू छुट्टी से आने के बाद डाक्टर द्वारा जांच की पर्ची, दवाईयों के बिल,  और क्या इलाज करवाया, सब लेते आना। हमें सपूत चाहिए कि तू सच बोल रहा है या झूठ।
(क्या ये सही है?.. आप ही कहिये)
(3). अगर हमारे मां बाप बिमार होते हैं तो इन से छुट्टी मांगने पर ये कहते हैं कि घर पर तेरे अलावा कोई भाई बहन नहीं है जो देख रेख कर सके। लेकिन अगर इनके मां बाप बिमार होते हैं तो हम में से किसी सिपाही को वहाँ भेज देते हैं उनकी टटी साफ करने के लिए।  क्या ये सही है?
(4). हम अगर सेना के अंदर family member बनते हैं तो हमारी wife को ये और इनकी wife..  family welfare के नाम पर नचवाने के लिए मजबूर कर देते हैं, नहीं नाचती है तो हम सैनिकों को परेशान करते रहते हैं। फिर कहते हैं कि हम आपकी wife को सोशल बना रहे हैं।  मेरी wife ने कई बार इसकी शिकायत की मुझ से लेकिन मैं चुप रहा। मैं कहता हूँ कि जब मुझे नहीं जरूरत की मेरी वाइफ नाचे तो तुम कौन होते हो नचाने और सोशल बनाने वाले । (क्या ये सही है...आप ही कहो)
 (5). अगर एक आफिसर को गोली लगती है आपरेशन के दौरान तो वहां तुरंत हेलीकॉप्टर पहुंच जाता है, लेकिन अगर एक सिपाही को गोली लगती है तो 2.5 ton के पीछे डाल देते हैं, जिस कारण नजदीकी मेडिकल सेंटर तक पहुंचते पहुंचते उसकी मौत हो जाती है।
(6). किसी यूनिट का अगर कोई जवान जैसे आज किसी आपरेशन में मर जाता है तो पूरे जवान उस दिन खाना नहीं खा पाते लेकिन अगर आफिसर मैस में पहले से उस दिन पार्टी का आयोजन होना होता है तो वो होता ही है।  कहते हैं हमारे लिए जवान मरा, कुत्ता मरा, बात बराबर है। ऐसी सोच के लिए आप क्या कहेंगे???
(7). यहाँ तक कि अगर एक आफिसर और एक जवान को एक जैसा बुखार या बिमारी हो तो MH में दवाईयों में भी फर्क होता है।  आफिसर को दो दिन में ठीक कर वापस भेज देते हैं जबकि जवान को 10 दिन तक MH में पडाये रखते हैं,  experiment करते रहते हैं।
(8). अगर किसी आफिसर की family members में किसी को खुन कि जरूरत होती है तो ये जवानों का blood group मैच कर उसको by force खुन देने के लिए भिजवाते हैं, चाहे उस जवान की इच्छा हो या ना हो।  और डाक्टर खुन को खुन, जवानों का प्लाज्मा तक निकाल देते हैं।
(9). RR hospital Delhi.. जहाँ एक सैनिक को तब मेडिकल ग्राउंड में रिफर किया जाता है जब उसकी बिमारी नयी या unknown हो।  लेकिन वहाँ जा कर बेचारे सैनिक का इलाज कम, नये नये टेस्ट किये जाते हैं, नयें नौसिखिया डाक्टरों को प्रेक्टीकल के रूप में जवानों की body object के रूप में दि जाती है,  क्योंकि अगर मर भी गया तो उसके घर वालों को 20-25 लाख पकड़ा कर चुप करवा देंगे...  मैं तो कहता हूँ कि अगर कोई सैनिक मिलिट्री डाक्टर के इलाज के दौरान मरता है तो उस सैनिक का पोस्ट मार्टम फिर से उस सैनिक के घर वालों को करना चाहिए,  ताकि ये पता चल सके कि कहीं सैनिक के शरीर के साथ फालतू छेड़छाड़ तो नहीं हुई जिस कारण उसकी मौत हुई हो।
(10). सेना में 60 दिन सालाना अवकाश और 30 दिन अकाससमिक अवकाश का प्रबंध है लेकिन एक युनिट के अंदर सैनिकों की कम मौजूदगी के कारण ये अवकाश मात्र 60 दिन ही मिल पाता है क्योंकि युनिट के आधे सैनिक तो सेवा पर तैनात आफिसर और सेवानिवृत आफिसर के सहायक (नौकर),  कुत्ते घुमाने, इनके मां बाप की सेवा करने,  बीवी के अंडरगारमेट धोने पर लगे होते हैं,  अगर सिपाही ये सब करने से मना करे तो उसके लिए शाररिक,मानसिक और फाइनेंशल दंड तुरंत लगवा देते हैं,  साथ में और भी कई आर्मी एक्ट।  सिपाही बेचारा गरीब घर का,  बुड्ढे मां बाप,  बीवी बच्चों का बोझ लिए चुपचाप सहता आ रहा है ये सब, क्योंकि उसके पास सिर्फ यही नौकरी है।  लेकिन आज जब तेज बाहदूर यादव ने मंगल पांडे बनने का फैसला ले ही लिया है तो हम भी क्यों सच्चाई को दबाते रहें।  देश को और साथ साथ हमारे घरवालों को भी पता चले कि हम पर क्या बीत रही है।।। ..
(11). जब एक आफिसर और एक जवान दोनों ही मिलिट्री में सेवा दे रहे हैं तो आफिसर की मिलिट्री सर्विस पे 6400 और जवान की 2000 क्यों?..  हैं तो दोनों सैनिक ही..  ये भेदभाव क्यों??
(12). सेना एक पिरामिड की तरह है,  जिसमें सैनिक नीव की ईंट है और जरनल सवोर्च्च भाग...  अगर सैनिक (नीव)  में प्रोब्लम आने लगेगी तो पूरी बिल्डिंग गिरने पर मजबूर हो जायेगी,  और हम सिपाही नहीं चाहते थे कि ऐसा हो, जिस कारण हम चुप बैठे थे लेकिन अब सह पाना मुश्किल सा लगता है।
(13). LOC. पर एक कंमाडिंग आफिसर अपने ACR (ANNUAL CONFIDENTIAL REPORT)  में अपने अच्छे point के लिए 4 आतंकियों के बदले अपने एक जवान को मरवा देता है लेकिन बेचारे के घरवालों को लगता है उनका बेटा शहीद हुआ है।
(14). हम सैनिकों को उतना डर आतंकियों से नहीं लगता जितना कि आफिसर का खौफ होता है, न जाने कौन सी बात पर कौन सा एक्ट लगा दें।
(15). अंत मे मै यही कहना चाहता हूं कि सेना के system में बदलाव होना चाहिए,  क्योंकि ना हम इन आफिसरस के लिए नौकरी कर रहे हैं, ना ये हमारे लिए नौकरी कर रहे हैं, हम सब को मिलकर इस देश के लिए नौकरी करनी चाहिए लेकिन ये तब ही संभव होगा जब सेना से ये भेदभाव मिटेगा, आफिसर साही, तानाशाही मिटेगी...  सरकार से दरख्वास्त है कि कृपा कर के वोट बैंक से उपर आ कर सोचें..  देश के जवानों के बारे में सोचें..
(16). हम जवान अगर किसी कारण वस छुट्टी से 1-2 घंटा लेट हो जाते हैं तो हमारे लिए बिना सोचे समझे क्वाटर गार्ड तैयार मिलता है।  जबकी एक जवान सिमित समय में छुट्टी खतमहोने पर लगभग 1200-1300 किमी ट्रेन से यात्रा करता है, और कभी कभी ट्रेन लेट हो जाती है,  फिर कहते हैं यहाँ मुहर लगवाते, वहाँ मुहर लगवाते।  😏
बहुत सी और भी खतरनाक और खौफ नाक कमियां हैं सैना में.....  विस्तार करने पर पूरा दिन लग जायेगा,  मैं मिडीया चैनल, न्यूज चैनल से दरख्वास्त करता हूं कि बात विवाद के लिए न्यूज बाक्स में सैना के आफिसर्स को नहीं बल्कि एक सिपाही को बैठा कर पूछें लेकिन याद रहे उस सिपाही को पहले से ही इनके द्वारा हरासमेटं ना कर दिया गया हो कि अगर तुने कुछ और कहा तो देख लेना।
....................................
दोस्तों मेरे द्वारा लिखा ये सच आप ज्यादा से ज्यादा शेयर कर सकते हैं लेकिन कृपा कर मेरा नाम मत लेना।  मेरे भी दो छोटी छोटी लड़कीयां हैं.. .  जिनके लिए मुझे नौकरी तो करनी ही पड़ेगी, सहना तो पडेगा.....  लेकिन कृपया इस मैसेज को जहां तक पहुंचना चाहिए वहां तक जरूर पहुंचा दिजियेगा....  धन्यवाद....  जय हिंद ....

आईये .....!!! भारतीय सेना की खामियों में सुधार की कोशिश करें .......

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....
आदरणीय देशवासियों ,
ये लेख किसी फौजी भाई ने भेजा है, जिसमें जवानों की समस्याओं के बारे में जानकारी दी गई है। आप सभी से निवेदन है कि -- हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं , और सरकार पर भी इन सुधारों के लिए दबाब बनाएं, ताकि  भाई तेजबहादुर सिंह BSF का संघर्ष व्यर्थ न जाये ......


📡📡📡      सेना अध्यक्ष विपिन रावत कहते हैं कि अगर सैनिकों को कोई परेशानी है तो वो मुझे सुझाव लिखित में भेजें..  लेकिन सर जी हमारे सुझाव और शिकायत आप तक पहुंचने कौन देगा..?
आप भी यहीं से तो वहां तक पहुंचे हैं...  जब सारे officers एक हो गये तो आप भी उन्हीं का साथ दोगे... मैने ये देखा है tv डिवेट में.... मैं यहाँ भारतीय सेना.. Indian army की बात कर रहा हूँ सिर्फ...  चाहे bsf हो, itbp हो, ssb हो, crpf हो,  सब जगह सैनिकों का शोषण होता है,  शारीरिक तौर पर भी और मानसिक तौर पर भी...  ये कैसे होता है..  मैं आपको बताता हूँ....
(1). अगर सैनिक के घर पर सैनिक के मां बाप बिमार होते हैं, और उस दौरान घर पर उस  सैनिक की जरूरत घरवालों को सेना से ज्यादा होती है तो छुट्टी के लिए जब सैनिक आफिसर के सामने ( interview)  में जाता है तो सवाल जवाब कुछ यूं होते हैं..
आफिसर :- क्या प्रोब्लम है?
जवान :- सर मेरी माँ बिमार है, मुझे छुट्टी चाहिए।
आफिसर :- आपको किसने बताया कि मां बिमार है?
जवान :- सर पापा का फोन आया था।
आफिसर :- तेरा बाप डाक्टर है क्या?
(सोचिये जरा आप भी....)
(2).आफिसर :- ठीक है, तू छुट्टी जा अगर सच में तेरी मां बिमार है तो तू छुट्टी से आने के बाद डाक्टर द्वारा जांच की पर्ची, दवाईयों के बिल,  और क्या इलाज करवाया, सब लेते आना। हमें सपूत चाहिए कि तू सच बोल रहा है या झूठ।
(क्या ये सही है?.. आप ही कहिये)
(3). अगर हमारे मां बाप बिमार होते हैं तो इन से छुट्टी मांगने पर ये कहते हैं कि घर पर तेरे अलावा कोई भाई बहन नहीं है जो देख रेख कर सके। लेकिन अगर इनके मां बाप बिमार होते हैं तो हम में से किसी सिपाही को वहाँ भेज देते हैं उनकी टटी साफ करने के लिए।  क्या ये सही है?
(4). हम अगर सेना के अंदर family member बनते हैं तो हमारी wife को ये और इनकी wife..  family welfare के नाम पर नचवाने के लिए मजबूर कर देते हैं, नहीं नाचती है तो हम सैनिकों को परेशान करते रहते हैं। फिर कहते हैं कि हम आपकी wife को सोशल बना रहे हैं।  मेरी wife ने कई बार इसकी शिकायत की मुझ से लेकिन मैं चुप रहा। मैं कहता हूँ कि जब मुझे नहीं जरूरत की मेरी वाइफ नाचे तो तुम कौन होते हो नचाने और सोशल बनाने वाले । (क्या ये सही है...आप ही कहो)
 (5). अगर एक आफिसर को गोली लगती है आपरेशन के दौरान तो वहां तुरंत हेलीकॉप्टर पहुंच जाता है, लेकिन अगर एक सिपाही को गोली लगती है तो 2.5 ton के पीछे डाल देते हैं, जिस कारण नजदीकी मेडिकल सेंटर तक पहुंचते पहुंचते उसकी मौत हो जाती है।
(6). किसी यूनिट का अगर कोई जवान जैसे आज किसी आपरेशन में मर जाता है तो पूरे जवान उस दिन खाना नहीं खा पाते लेकिन अगर आफिसर मैस में पहले से उस दिन पार्टी का आयोजन होना होता है तो वो होता ही है।  कहते हैं हमारे लिए जवान मरा, कुत्ता मरा, बात बराबर है। ऐसी सोच के लिए आप क्या कहेंगे???
(7). यहाँ तक कि अगर एक आफिसर और एक जवान को एक जैसा बुखार या बिमारी हो तो MH में दवाईयों में भी फर्क होता है।  आफिसर को दो दिन में ठीक कर वापस भेज देते हैं जबकि जवान को 10 दिन तक MH में पडाये रखते हैं,  experiment करते रहते हैं।
(8). अगर किसी आफिसर की family members में किसी को खुन कि जरूरत होती है तो ये जवानों का blood group मैच कर उसको by force खुन देने के लिए भिजवाते हैं, चाहे उस जवान की इच्छा हो या ना हो।  और डाक्टर खुन को खुन, जवानों का प्लाज्मा तक निकाल देते हैं।
(9). RR hospital Delhi.. जहाँ एक सैनिक को तब मेडिकल ग्राउंड में रिफर किया जाता है जब उसकी बिमारी नयी या unknown हो।  लेकिन वहाँ जा कर बेचारे सैनिक का इलाज कम, नये नये टेस्ट किये जाते हैं, नयें नौसिखिया डाक्टरों को प्रेक्टीकल के रूप में जवानों की body object के रूप में दि जाती है,  क्योंकि अगर मर भी गया तो उसके घर वालों को 20-25 लाख पकड़ा कर चुप करवा देंगे...  मैं तो कहता हूँ कि अगर कोई सैनिक मिलिट्री डाक्टर के इलाज के दौरान मरता है तो उस सैनिक का पोस्ट मार्टम फिर से उस सैनिक के घर वालों को करना चाहिए,  ताकि ये पता चल सके कि कहीं सैनिक के शरीर के साथ फालतू छेड़छाड़ तो नहीं हुई जिस कारण उसकी मौत हुई हो।
(10). सेना में 60 दिन सालाना अवकाश और 30 दिन अकाससमिक अवकाश का प्रबंध है लेकिन एक युनिट के अंदर सैनिकों की कम मौजूदगी के कारण ये अवकाश मात्र 60 दिन ही मिल पाता है क्योंकि युनिट के आधे सैनिक तो सेवा पर तैनात आफिसर और सेवानिवृत आफिसर के सहायक (नौकर),  कुत्ते घुमाने, इनके मां बाप की सेवा करने,  बीवी के अंडरगारमेट धोने पर लगे होते हैं,  अगर सिपाही ये सब करने से मना करे तो उसके लिए शाररिक,मानसिक और फाइनेंशल दंड तुरंत लगवा देते हैं,  साथ में और भी कई आर्मी एक्ट।  सिपाही बेचारा गरीब घर का,  बुड्ढे मां बाप,  बीवी बच्चों का बोझ लिए चुपचाप सहता आ रहा है ये सब, क्योंकि उसके पास सिर्फ यही नौकरी है।  लेकिन आज जब तेज बाहदूर यादव ने मंगल पांडे बनने का फैसला ले ही लिया है तो हम भी क्यों सच्चाई को दबाते रहें।  देश को और साथ साथ हमारे घरवालों को भी पता चले कि हम पर क्या बीत रही है।।। ..
(11). जब एक आफिसर और एक जवान दोनों ही मिलिट्री में सेवा दे रहे हैं तो आफिसर की मिलिट्री सर्विस पे 6400 और जवान की 2000 क्यों?..  हैं तो दोनों सैनिक ही..  ये भेदभाव क्यों??
(12). सेना एक पिरामिड की तरह है,  जिसमें सैनिक नीव की ईंट है और जरनल सवोर्च्च भाग...  अगर सैनिक (नीव)  में प्रोब्लम आने लगेगी तो पूरी बिल्डिंग गिरने पर मजबूर हो जायेगी,  और हम सिपाही नहीं चाहते थे कि ऐसा हो, जिस कारण हम चुप बैठे थे लेकिन अब सह पाना मुश्किल सा लगता है।
(13). LOC. पर एक कंमाडिंग आफिसर अपने ACR (ANNUAL CONFIDENTIAL REPORT)  में अपने अच्छे point के लिए 4 आतंकियों के बदले अपने एक जवान को मरवा देता है लेकिन बेचारे के घरवालों को लगता है उनका बेटा शहीद हुआ है।
(14). हम सैनिकों को उतना डर आतंकियों से नहीं लगता जितना कि आफिसर का खौफ होता है, न जाने कौन सी बात पर कौन सा एक्ट लगा दें।
(15). अंत मे मै यही कहना चाहता हूं कि सेना के system में बदलाव होना चाहिए,  क्योंकि ना हम इन आफिसरस के लिए नौकरी कर रहे हैं, ना ये हमारे लिए नौकरी कर रहे हैं, हम सब को मिलकर इस देश के लिए नौकरी करनी चाहिए लेकिन ये तब ही संभव होगा जब सेना से ये भेदभाव मिटेगा, आफिसर साही, तानाशाही मिटेगी...  सरकार से दरख्वास्त है कि कृपा कर के वोट बैंक से उपर आ कर सोचें..  देश के जवानों के बारे में सोचें..
(16). हम जवान अगर किसी कारण वस छुट्टी से 1-2 घंटा लेट हो जाते हैं तो हमारे लिए बिना सोचे समझे क्वाटर गार्ड तैयार मिलता है।  जबकी एक जवान सिमित समय में छुट्टी खतमहोने पर लगभग 1200-1300 किमी ट्रेन से यात्रा करता है, और कभी कभी ट्रेन लेट हो जाती है,  फिर कहते हैं यहाँ मुहर लगवाते, वहाँ मुहर लगवाते।  😏
बहुत सी और भी खतरनाक और खौफ नाक कमियां हैं सैना में.....  विस्तार करने पर पूरा दिन लग जायेगा,  मैं मिडीया चैनल, न्यूज चैनल से दरख्वास्त करता हूं कि बात विवाद के लिए न्यूज बाक्स में सैना के आफिसर्स को नहीं बल्कि एक सिपाही को बैठा कर पूछें लेकिन याद रहे उस सिपाही को पहले से ही इनके द्वारा हरासमेटं ना कर दिया गया हो कि अगर तुने कुछ और कहा तो देख लेना।
....................................
दोस्तों मेरे द्वारा लिखा ये सच आप ज्यादा से ज्यादा शेयर कर सकते हैं लेकिन कृपा कर मेरा नाम मत लेना।  मेरे भी दो छोटी छोटी लड़कीयां हैं.. .  जिनके लिए मुझे नौकरी तो करनी ही पड़ेगी, सहना तो पडेगा.....  लेकिन कृपया इस मैसेज को जहां तक पहुंचना चाहिए वहां तक जरूर पहुंचा दिजियेगा....  धन्यवाद....  जय हिंद ....!!! 

अगर आप गैर जमानती वारंट के दुरुपयोग के शिकार है तो ….... ये तरीका अपनाएं .........!!!

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

आदरणीय देशवासियों ,

अगर आपके साथ या किसी भी जानकारी में किसी  के साथ,  किसी जज या पुलिस ने गैरजमानती वारंट का दुरुपयोग करके प्रताड़ित किया है तो , इस RTI का इस्तेमाल करके अपने साथ 2 दूसरे पीड़ित लोगों का भी भला कर सकते हैं ।

Thursday, 2 February 2017

5 साल के बाद भोगी राम की सोच रंग लाई और हाई कोर्ट ने सच स्वीकार किया ................

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

मोहाली के वकील W. C. Sh. Sanjeev Sharma की सूझ बुझ ने हाई कोर्ट चंडीगढ़ के जजों को सच को स्वीकार करने को मजबूर किया ............

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....
दरअसल लगभग 5 साल पहले फिरोज़पुर झिरका कोर्ट में कार्यरत कर्मचारी भोगी राम जी ने स्टेशनरी की कमी को लेकर, इस समस्या का समाधान करने के लिए अपने तत्कालीन जिला सेशन जज डी एस श्योराण को लिखा ।

 समाधान के लिए कोई कार्यवाही करना तो बहुत दूर की बात है, उनके खिलाफ ही 4 इन्क्वारी शुरू करवा दी गई । उसके बाद पिने के पानी के लिए  लिखा तो 4 इन्क्वारी ईनाम  में मिली। उनका बच्चा हॉस्पिटल में भर्ती था बच्चे को टी बी हो गई थी, ऑपरेशन होना था , इन निर्दयी जजों ने जानबूझकर  भोगी राम की छुट्टी सैंक्शन नहीं की और हॉस्पिटल से ही भोगी राम को बुलाया और उन पर 5000 रूपये  का जुर्माना लगाया और 4 नई इन्क्वारी ईनाम में दी ।
12 इन्क्वारी हर 3 महीने में ट्रान्सफर ( 2 साल में 7 बार ) ताकि प्रताड़ित हो, और जजों की तानाशाही को स्वीकार कर ले ।

ऐसी बेवकूफी करने के लिए जज पब्लिक के खून पसीने की कमाई बर्बाद कर रहे हैं ।

Indian  Judges are wasting the Public funds, by spending their 98% energy to deliver injustice by converting Truth in to False and False in to Truth or to continue their dictatorship.

अब समस्या ये थी कि जजों के खिलाफ कौन वकील खड़ा होने को तैयार होगा .......???

मोहाली के वकील  Wing Commander Sh. Sanjeev Sharma ji ने इस चुनौती भरे काम को स्वीकार किया धड़ा धड़ 25 के करीब मुक़दमे ठोके , जजों के बेवकूफी भरे आदेशों को कैंसिल करवाया 200 से ज्यादा अलग 2  Representations , RTI , अपील डाली ।
और आज हाई कोर्ट के जजों ने इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए, हरियाणा  के स्टेशनरी विभाग के सचिव को तलब करते हुए इस समस्या के समाधान के लिए किये गए प्रयास की जानकारी मांगी है ।

मोहाली के वकील W. C. Sanjeev Sharma की सूझ बुझ ने हाई कोर्ट चंडीगढ़ के जजों को सच को स्वीकार करने को मजबूर किया ............

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ..

दरअसल लगभग 5 साल पहले फिरोज़पुर झिरका कोर्ट में कार्यरत कर्मचारी भोगी राम जी ने स्टेशनरी की कमी को लेकर, इस समस्या का समाधान करने के लिए अपने तत्कालीन जिला सेशन जज डी एस श्योराण को लिखा ।

 समाधान के लिए कोई कार्यवाही करना तो बहुत दूर की बात है, उनके खिलाफ ही 4 इन्क्वारी शुरू करवा दी गई । उसके बाद पिने के पानी के लिए  लिखा तो 4 इन्क्वारी ईनाम  में मिली। उनका बच्चा हॉस्पिटल में भर्ती था बच्चे को टी बी हो गई थी, ऑपरेशन होना था , इन निर्दयी जजों ने जानबूझकर  भोगी राम की छुट्टी सैंक्शन नहीं की और हॉस्पिटल से ही भोगी राम को बुलाया और उन पर 5000 रूपये  का जुर्माना लगाया और 4 नई इन्क्वारी ईनाम में दी ।
12 इन्क्वारी हर 3 महीने में ट्रान्सफर ( 2 साल में 7 बार ) ताकि प्रताड़ित हो, और जजों की तानाशाही को स्वीकार कर ले ।

ऐसी बेवकूफी करने के लिए जज पब्लिक के खून पसीने की कमाई बर्बाद कर रहे हैं ।

Indian  Judges are wasting the Public funds, by spending their 98% energy to deliver injustice by converting Truth in to False and False in to Truth or to continue their dictatorship.

अब समस्या ये थी कि जजों के खिलाफ कौन वकील खड़ा होने को तैयार होगा .......???

मोहाली के वकील  Wing Commander Sh. Sanjeev Sharma ji ने इस चुनौती भरे काम को स्वीकार किया धड़ा धड़ 25 के करीब मुक़दमे ठोके , जजों के बेवकूफी भरे आदेशों को कैंसिल करवाया 200 से ज्यादा अलग 2  Representations , RTI , अपील डाली ।
और आज हाई कोर्ट के जजों ने इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए, हरियाणा  के स्टेशनरी विभाग के सचिव को तलब करते हुए इस समस्या के समाधान के लिए किये गए प्रयास की जानकारी मांगी है ।

Wednesday, 1 February 2017

क्या जज पब्लिक सर्वेंट नहीं हैं ........???

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....
जहाँ तक मुझे जानकारी है जनसेवक या पब्लिक सर्वेंट वो हर व्यक्ति है --- जो किसी भी रूप से पब्लिक फण्ड से वेतन लेता है, चाहे वो 2000 रूपये हो या फिर 2 लाख रूपये हो ।

अब सवाल ये है कि --- ये जज और कोर्ट खुद भी वेतन और दूसरी सुविधा, जनता के खून पसीने की कमाई से इक्कठा किये गए,  पब्लिक फण्ड से लेते हैं तो ये भी जनसेवक या Public Servant ही हुए । आज के दिन जज अपनी तानाशाही सोच के चलते , पब्लिक फण्ड को जानबूझकर बर्बाद कर रहे हैं ।  ये जज दूसरों  ( यानि कि कार्यपालिका, विधानपलिका ) को तो बड़े 2 प्रवचन देते हैं , जबकि इस समय देश में सबसे ज्यादा पब्लिक फण्ड की बर्बादी हिंदुस्तान के जज कर रहे हैं ।

 कारण ये है कि संविधान निर्माताओं ने गलती ये कर दी कि -- न्यायपालिका को निष्पक्ष रखने की नियत से आजाद रख दिया । इन निरंकुश और बेलगाम ताकत ने जजों का दिमाग जरुरत से ज्यादा ख़राब कर दिया क्योंकि -- इनके फर्जीवाड़ों और गैर कानूनी गतिविधियों पर कभी भी रोक लगाने की कोशिश ही नहीं की गई ।
न जाने कितने करोड़ों निर्दोष लोग झूठे केस और न्यायपालिका के गैर जिम्मेदार रवैये के कारण हुई ,  मानसिक, आर्थिक सामाजिक, प्रताड़ना के चलते और जानबूझकर न्याय न मिलने के कारण इस दुनिया से अलविदा हो गए .........???

कितने करोड़ों लोगों का कैरियर / काम धंधा / नौकरी चौपट हो गया। और करोड़ों लोगों को मजबूर करके आत्महत्या करने को विवश किया गया  .......???

इन जजों को ये गलतफहमी हो गई है कि --- उनके सामने खुद भी क्या चीज है ......???

जब इस देश में हर पब्लिक सर्वेंट की जिम्मेदारी है, ( जैसे -- चपरासी, ड्राईवर, डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस, IAS, IPS, MLA, MP) तो इन जजों को फर्जीवाड़ा करने के लिए छूट क्यों ......???

आईये .... !!!  देश के निर्दोष लोगों की प्रताड़ना, और लोगों के खून पसीने की कमाई के पैसे यानि की पब्लिक फण्ड की बर्बादी को रोकने, जजों के तानाशाही प्रवृति पर रोक लगाकर, उनको जिम्मेदारी से काम करने को मजबूर करने के लिए , संविधान मे संशोधन की मांग करते हुए जजों की जबाबदेही कानून और इनकी शिकायत के लिए अलग व्यवस्था बनाने के लिए केंद्र सरकार को मजबूर करें, ताकि जजों के खिलाफ आने वाली शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट / हाई कोर्ट की भृष्ट जजों को बचाकर, फर्जीवाड़ा और भृष्टाचार पर रोक लगाई जा सके और इस देश के शरीफ लोग,  शराफत के साथ शोषणमुक्त,और खुशनुमा वातावरण में जी सकें ।

मोहाली के वकील W. C. Sanjeev Sharma की सूझ बुझ ने हाई कोर्ट चंडीगढ़ के जजों को सच को स्वीकार करने को मजबूर किया ............

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....
दरअसल लगभग 5 साल पहले फिरोज़पुर झिरका कोर्ट में कार्यरत कर्मचारी भोगी राम जी ने स्टेशनरी की कमी को लेकर, इस समस्या का समाधान करने के लिए अपने तत्कालीन जिला सेशन जज डी एस श्योराण को लिखा ।

 समाधान के लिए कोई कार्यवाही करना तो बहुत दूर की बात है, उनके खिलाफ ही 4 इन्क्वारी शुरू करवा दी गई । उसके बाद पिने के पानी के लिए  लिखा तो 4 इन्क्वारी ईनाम  में मिली। उनका बच्चा हॉस्पिटल में भर्ती था बच्चे को टी बी हो गई थी, ऑपरेशन होना था , इन निर्दयी जजों ने जानबूझकर  भोगी राम की छुट्टी सैंक्शन नहीं की और हॉस्पिटल से ही भोगी राम को बुलाया और उन पर 5000 रूपये  का जुर्माना लगाया और 4 नई इन्क्वारी ईनाम में दी ।
12 इन्क्वारी हर 3 महीने में ट्रान्सफर ( 2 साल में 7 बार ) ताकि प्रताड़ित हो, और जजों की तानाशाही को स्वीकार कर ले ।

ऐसी बेवकूफी करने के लिए जज पब्लिक के खून पसीने की कमाई बर्बाद कर रहे हैं ।

Indian  Judges are wasting the Public funds, by spending their 98% energy to deliver injustice by converting Truth in to False and False in to Truth or to continue their dictatorship.

अब समस्या ये थी कि जजों के खिलाफ कौन वकील खड़ा होने को तैयार होगा .......???

मोहाली के वकील  Wing Commander Sh. Sanjeev Sharma ji ने इस चुनौती भरे काम को स्वीकार किया धड़ा धड़ 25 के करीब मुक़दमे ठोके , जजों के बेवकूफी भरे आदेशों को कैंसिल करवाया 200 से ज्यादा अलग 2  Representations , RTI , अपील डाली ।
और आज हाई कोर्ट के जजों ने इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए, हरियाणा  के स्टेशनरी विभाग के सचिव को तलब करते हुए इस समस्या के समाधान के लिए किये गए प्रयास की जानकारी मांगी है ।







सुप्रीम कोर्ट ही जजों के भरष्टाचार और फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेदार है क्योंकि.............

आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India .....

सुप्रीम कोर्ट ही जजों के भरष्टाचार और फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेदार है क्योंकि  ---

जो भी सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायधीश बनता है, वो जजों के भरष्टाचार की सच्चाई को मानता तो है, लेकिन करता कुछ भी नहीं ।

ये लोग हाई कोर्ट और निचली कोर्ट के जजों को बचाने के लिए , उनके  फर्जीवाड़े के खिलाफ कुछ नहीं करते ।
आइये .....!!! भारत बदलें .... Let's Change India ....

सहनशीलता की एक सीमा होती है, जब ये जज बेशर्म होकर जानबूझकर फर्जीवाड़ा करते रहेंगे, न्याय की हत्या करते रहेंगे, तो शरीफ लोगों को एक सीमा  के बाद शराफत छोड़कर किसी भी हद तक कदम उठाने को मजबूर होना पड़ता है। और जब शरीफ अपनी शराफत छोड़ता है तो बड़े 2 तानाशाह ख़त्म हो जाते है, ये जज तो कुछ भी नहीं हैं  ........ ये जज अंदर से बहुत ही कमजोर हैं, इनमे सच का सामना करने की हिम्मत नहीं है । ये तो बस शरीफ लोगों को जेल भेजने का डर बनाकर , उनको अपनी मर्जी के अनुसार नचा रहे हैं । जो आदमी जेल से नहीं डरता, उससे ये जज डरते हैं । और मोहिनी कामवानी जी की इस बात से भी हम सहमत हैं कि  सुप्रीम कोर्ट ही जजों के भरष्टाचार और फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेदार है। क्योंकि ये लोग हाई कोर्ट और निचली कोर्ट के जजों के फर्जीवाड़े के खिलाफ कुछ नहीं करते ।