आईये.... .....!!! भारत बदलें ....
Let's Change India ....
Please read these link to know more about irresponsible attitude of Judiciary---
1) https://www.facebook.com/photo.php?fbid=830258670388035&set=a.561519237261981.1073741827.100002117282111&type=1
2) http://www.bhaskar.com/article/UT-CHD-former-justice-bains-write-to-14-judge-in-amritsar-suicide-case-4960830-NOR.html
आदरणीय देशवासियों,
इस समय देश के सबसे ज्यादा लोग अगर परेशान हैं तो वो है – न्यायिक आतंकवाद ( Judicial Terrorism ) से .
पहले होता था –पाकिस्तान और दुसरे देशों से आया आतंकवाद. फिर आया कानूनी आतंकवाद – जिसमे कानून दुरूपयोग करके प्रताड़ना और अवैध वसूली करना ( जिसके मुख्य कारण महिलाओं के द्वारा कानून दुरूपयोग रहे ). लेकिन अब जोआतंकवाद का रूप है, ....... वो इन सबसे खतरनाक है .
आइये.....!!! जाने क्यों..................???
-- क्योकि इन आतंकवाद फैलाने वाले कोई और नहीं, ये वे लोग हैं ---जिनको लोग भगवान समझकर, न्याय के मंदिर यानि कि कोर्ट में आते हैं .
-- दूसरा ये कारण कि इनके पास बहुत सारी ताकत है, जिसके बल पर ये लोग पुलिस, प्रशाशन, कानून का दुरूपयोग बड़ी ही आसानी से कर लेते हैं.
-- इनके खिलाफ कोई आम आदमी कोशिश करने की कोशिश कर भी ले, तो वकील पैरवी नहीं करेगा.
-- ये लोग झूठे केस या आरोप लगाकर आप को, बिना कसूर के, जेल भी भेज सकते हैं.
-- आपके केस में आप की गलती नहो तो भी, आपके सारे सबूतों को नकार कर, आपको सजा कर सकते हैं .
--- मीडिया भी इनके खिलाफ जल्दीसे खबर छपने की हिम्मत नहीं करता .
-- अन्याय का विरोध करने पर, अदालत की अवमानना का डर दिखा कर, भोले – भाले लोगों को कई पीढ़ियों से मन में बिठाया हुआ डर .
कोर्ट में दिखावा ऐसा करेंगे कि —अगर भगवान् भी धरती पर आ जाये..............., तो भगवान् से भी ज्यादा ईमानदार,..... ये जज लगें.
पहले गलत काम छुप कर होते थे. इन्होने देखा कि – जब नेता लोग इतने मजे लूट रहे हैं, तो तुम पीछे क्यों रहे ............??? धीरे – धीरे गड़बड़ियां और भ्रष्टाचार होता रहा. इधर से जनता भी शिक्षा के प्रसार के कारण जागरूक हुई . जब लोग विरोध करने लगे ,... तो इनको लगा की तुम फंस जाओगे ,... तो इन्होने अंदरखाने से Pressure बनाना शुरू किया . बड़े जज छोटे जजों को बचाने लगे और बदले में अवैध प्रतिफल लेने लगे .
अब हालात इतने खतरनाक हो गए है कि – ये जज ही पद की ताकत के अहंकार के कारण कानून और नियमो का सबसे ज्यादा दुरूपयोग और मजाक बनाने लग गये .
निर्दोष लोगों को जानबूझकर डराना, मानसिक,आर्थिक रूप से प्रताड़ित करना और फिर डरा कर अवैध वसूली करना.
ये काम आजकल देश की अदालतों में, ( उपर से नीचें तक ) बिना किसी भय के हो रहे हैं . जनता और देश के प्रति कोई जिम्मेदारी .............या......... जबाबदेही नहीं .................???
क्या जज बनने का मतलब तानाशाही और मनमानी करने का लाइसेंस मिलना है ....................???
देश के कोर्ट , जिनको लोग न्याय का मंदिर मान कर आते हैं , वहां पर भ्रष्ट पुजारियों ( भ्रष्ट जजों ) ने इन पवित्र स्थान को अन्याय और प्रताड़ना के केंद्र में परिवर्तित कर दिया है . लोगो का न्यायपालिका की इन कारगुजारियों के कारण विशवास उठ चूका है.
ये न्यायिक आतंकवाद न केवल लोगो को मरने के लिए मजबूर कर रहा है ,.... बल्कि देश की अर्थ व्यवस्था को भी खतरनाक तरीके से,...... खोखला कर रहा है .
क्या इसी आजाद हिन्दुस्तान के लिए हमारे पूर्वजों ने यातनाएं सही थी ...............???
क्याइसी खोखली आज़ादी में, आप घुट घुट कर मरना चाहते हैं ..................???
अब वक्त आ गया है,...... कुछ करने या मरने का...............
अगर आप हमारे विचारो से सहमत हैं, तो इस विचार को घर घर तक पहुंचाने में सहयोग करें.
आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित हैं ...................
आपका
भवदीय
Manojj Kr. Vishwakarma... न्याय--- पुरुष
Social Activist, RTI Activist & Scientist
A Responsible Citizen of Nation.......
भवदीय
Manojj Kr. Vishwakarma... न्याय--- पुरुष
Social Activist, RTI Activist & Scientist
A Responsible Citizen of Nation.......
संवैधानिक चेतावनी :-- हमारा उद्देश्य न्यायपालिका को या ईमानदार जजों को बदनाम करना नहीं है . लेकिन फर्जीवाड़े को लोगो तक पहुँचाना है. अब तो हालात ही ऐसे कर दिए हैं, तो सच भी कब तक दबा रहेगा ..............??? कोई भी व्यक्ति हमारे दावो के सम्बन्ध में सबूत देख सकता है.
Please read these link to know more about irresponsible attitude of Judiciary---
1) https://www.facebook.com/photo.php?fbid=830258670388035&set=a.561519237261981.1073741827.100002117282111&type=1
2) http://www.bhaskar.com/article/UT-CHD-former-justice-bains-write-to-14-judge-in-amritsar-suicide-case-4960830-NOR.html
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