आदरणीय देशवासियों,
अभी मुझे कहीं से हाई कोर्ट चंडीगढ़ का एक पत्र मिला है, जिसमे सभी निचली अदालतों के जजों के खिलाफ आने वाली शिकायतों, को कम करने और जजों को शिकायतों से बचाने के लिए ( ताकि उनके खिलाफ किसी भी कार्यवाही करने से बचा जा सके ), नया नुस्खा निकाला गया है. इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के पत्र का भी हवाला दिया गया है . इस देश में वैसे तो लोकतान्त्रिक व्यवस्था है, लेकिन न्यायपालिका को आज भी तानाशाही वाले रुतबे मिले हुए हैं. जुडिशल प्रोटेक्शन एक्ट और कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट के माध्यम से इनको जबाबदेही और पारदर्शिता से बचाया जाता रहा है. न्यायपालिका दूसरे स्तम्भ कर्यपालिका, विधानपालिका, मीडिया और देश की आम जनता से बड़ी जिम्मेदारी, जबाबदेही, जिम्मेदारी की उम्मीद करती है . लेकिन जब जजों से वही उम्मीद जनता करे तो उनके खिलाफ झूठे कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट के मुकदमे दर्ज करके पहले ही आतंक फैलाकर, लोगों में जेल भेजने का ड़र फैलाकर, पहले ही हदें पार कर रही है . पहली बात तो ये कि-- ड़र के मरे पुलिस और जजों के खिलाफ कोई शिकायत करता ही नहीं. .........?? कोई विरला शिकायत करने कि हिम्मत करे तो उनके खिलाफ झठे केस दर्ज करके उनको प्रताड़ित करना ............और करवाना ........ और अब उपर से जजों के खिलाफ आने वाली शिकायतों को रोकने के लिए एफिडेविट लगाने की कंडीशन थोपना........... एक सोची समझी चालाकी है. क्योकि एक साधारण आदमी जजो के खिलाफ साबित कर नहीं सकेगा और फिर ये लोग उसको 7 साल के लिए जेल भेज देंगे .
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